परमात्मा का स्वरूप क्या है
parmatma ka swaroop kya hai
- परमपिता परमात्मा के स्वरूप को जानें-
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा ।
कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ॥
( श्वेताश्व० अ० ६ । ११)
एको वशी निष्क्रियाणां बहूना मेकं बीजं बहुधा यः करोति ।
तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीरास्तेषां सुखं शाश्वतं नेतरेषाम् ॥
( श्वेताश्व० अ० ६ । १२)
जो अकेला ही बहुत-से वास्तवमें अक्रिय जीवोंका शासक है और एक प्रकृतिरूप बीजको अनेक रूपोंमें परिणत कर देता है, उस हृदयस्थित परमेश्वरको जो धीर पुरुष निरन्तर देखते रहते हैं, उन्हींको सदा रहनेवाला परमानन्द प्राप्त होता है, दूसरोंको नहीं।
नित्यो नित्यानां चेतनश्चेतनाना मेको बहूनां यो विदधाति कामान् ।
तत्कारणं सांख्ययोगाधिगम्यं ज्ञात्वा देवं मुच्यते सर्वपाशैः ॥
( श्वेताश्व० अ० ६ । १३ )
जो एक, नित्य, चेतन परमात्मा बहुत-से नित्य चेतन आत्माओंके कर्मफलभोगोंका विधान करता है, उस ज्ञानयोग और कर्मयोगसे प्राप्त करनेयोग्य, सबके कारणरूप परमदेव परमात्माको जानकर मनुष्य समस्त बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है।
न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्रतारक नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः।
तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भासा सर्वमिदं विभाति ॥
( श्वेताश्व० अ० ६ । १४ )
वहाँ न तो सूर्य प्रकाश फैला सकता है न चन्द्रमा और तारागणका समुदाय ही, और न ये बिजलियाँ ही वहाँ प्रकाशित हो सकती हैं। फिर यह लौकिक अग्नि तो कैसे प्रकाशित हो सकता है, क्योंकि उसके प्रकाशित होनेपर ही उसीके प्रकाशसे ऊपर कहे हुए सूर्य आदि सब उसके पीछे प्रकाशित होते हैं। उसके प्रकाशसे यह सम्पूर्ण जगत् प्रकाशित होता है।
परमात्मा का स्वरूप क्या है
parmatma ka swaroop kya hai