नामके दस अपराध
Nam ke das apradh
- सनकादि मुनियों द्वारा यह उपदेश
गुरोरवज्ञां साधूनां निन्दा भेदं हरे हरौ।
वेदनिन्दा हरेर्नामबलात् पापसमीहनम् ॥
अर्थवादं हरे नि पाखण्डं नामसंग्रहे ।
अलसे नास्तिके चैव हरिनामोपदेशनम् ॥
नामविस्मरणं चापि नाम्न्यनादरमेव च ।
संत्यजेद् दूरतो वत्स दोषानेतान् सुदारुणान् ॥
(ना० पू० ८२ । २२-२४)
वत्स !गुरुका अपमान, साधु-महात्माओंकी निन्दा, भगवान शिव और विष्णुमें भेद, वेद-निन्दा, भगवन्नामके बलपर पाप करना, भगवन्नामकी महिमाको अर्थवाद समझना, नाम लेनेमें पाखण्ड फैलाना, आलसी और नास्तिकको भगवन्नामका उपदेश करना, भगवन्नामको भूल जाना तथा नाममें अनादर-बुद्धि करना—ये (दस) भयानक दोष हैं इनको दूरसे ही त्याग देना चाहिये।
शोकस्थानसहस्राणि भयस्थानशतानि च ।
दिवसे दिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम् ॥
(ना० पू० ६१ । २)
शोकके सहस्रों और भयके सैकड़ों स्थान हैं । वे प्रतिदिन मूढ मनुष्यपर ही अपना प्रभाव डालते हैं, विद्वान् पुरुषपर नहीं।
- नाम के यह दस अपराध जिन्हें साधु पुरुषों को कभी भी नहीं करना चाहिए-
- अपने गुरुजनों का अपमान कभी ना करें |
- साधु महात्माओं की निंदा करने से बचें |
- भगवान शिव और विष्णु में कभी थी भेद ना करें|
- वेदों की निंदा कभी ना करें |
- भगवान के नाम व भक्ति के बल पर कभी पाप ना करें |
- भगवन नाम की महिमा को अर्थ वाद कभी ना समझें यानी भगवान के नाम से ठगी कभी भी ना करें |
- नाम लेने में पाखंड नहीं फैलाना चाहिए |
- आलसी और नास्तिक को कभी भी भगवन नाम का उपदेश ना करें |
- भगवान को हमेशा हृदय में धारण करें कभी भी उनकी विस्मृति ना हो |
- भगवान के नाम में अनादर बुद्धि कभी भी ना करें|
नामके दस अपराध
Nam ke das apradh