मोक्ष कैसे प्राप्त होता
moksha mukti mantra in hindi

- मोक्ष-प्राप्तिका उपाय-
त्यक्तसङ्गो जितक्रोधो लध्वाहारो जितेन्द्रियः ।
पिधाय बुद्धया द्वाराणि मनो ध्याने निवेशयेत् ॥
आसक्तिका त्याग करके, क्रोधको जीतकर, स्वल्पाहारी और जितेन्द्रिय हो, बुद्धिसे इन्द्रियद्वारोंको रोककर मनको ध्यानमें लगावे ।
शून्येष्वेवावकाशेषु गुहासु च वनेषु च ।
नित्ययुक्तः सदा योगी ध्यानं सम्यगुपक्रमेत् ॥
नित्य योगयुक्त रहनेवाला योगी सदा एकान्त स्थानोंमें, गुफाओं और वनोंमें भलीभाँति ध्यान करे ।
वागदण्डः कर्मदण्डश्च मनोदण्डश्च ते त्रयः।
यस्यैते नियता दण्डाः स त्रिदण्डी महायतिः ॥
वाग्दण्ड, कर्मदण्ड और मनोदण्ड-ये तीन दण्ड जिसके अधीन हो, वही त्रिदण्डी' महायति है।
सर्वमात्ममयं यस्य सदसज्जगदीदृशम् ।
गुणागुणमयं तस्य कः प्रियः को नृपाप्रियः ॥
राजन् ! जिसकी दृष्टिमें सत्-असत् तथा गुण-अवगुणरूप यह समस्त जगत् आत्मस्वरूप हो गया है, उस योगीके लिये कौन प्रिय है और कौन अप्रिय ।
विशुद्धबुद्धिः समलोष्टकाञ्चनः
समस्तभूतेषु समः समाहितः ।
स्थानं परं शाश्वतमव्ययं च
परं हि गस्वा न पुनः प्रजायते ॥
जिसकी बुद्धि शुद्ध है, जो मिट्टीके ढेले और सुवर्णको समान समझता है, सब प्राणियोंके प्रति जिसका समान भाव है, वह एकाग्रचित्त योगी उस सर्वोत्कृष्ट सनातन अविनाशी परमपदको प्राप्त होकर फिर इस संसारमें जन्म नहीं लेता।
वेदाच्छ्रेष्ठाः सर्वयज्ञक्रियाश्च
__यज्ञाज्जप्यं ज्ञानमार्गश्च जप्यात् ।
ज्ञानाद् ध्यानं सङ्गरागव्यपेतं
तस्मिन् प्राप्ते शाश्वतस्योपलब्धिः ॥
वेदोंसे सम्पूर्ण यज्ञकर्म श्रेष्ठ हैं, यज्ञोंसे जर, जबसे ज्ञानमार्ग और उससे आसक्ति एवं रागसे रहित ध्यान श्रेष्ठ है। ऐसे ध्यानके प्रात हो जाने पर सनातन ब्रह्मकी उपलब्धि होती है।
समाहितो ब्रह्मपरोऽप्रमादी
शुचिस्तथैकान्तरतिर्यतेन्द्रियः ।
समाप्नुयाद् योगमिमं महात्मा
विमुक्तिमाप्नोति ततः स्वयोगतः ॥
जो एकाग्रचित्त, ब्रह्मपरायण, प्रमादरहित, पवित्र, एकान्तप्रेमी और जितेन्द्रिय होता है, वही महात्मा इस योगको पाता है और फिर अपने उस योगसे ही वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
(मार्कण्डेय० ४१ । २०-२६ )
मोक्ष कैसे प्राप्त होता
moksha mukti mantra in hindi