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दरिद्रका दान, सामर्थ्यशालीकी क्षमा, नौजवानोंकी तपस्या, - ज्ञानियोंका मौन, सुख भोगनेके योग्य पुरुषोंकी सुखेच्छानिवृत्ति तथा सम्पूर्ण प्राणियोंपर दया-ये सद्गुण स्वर्गमें ले जाते हैं।
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स्वर्ग में कौन जाता है जानें
swarg mein kaun jata hai
- स्वर्गमें कौन जाते हैं ?
येऽर्चयन्ति हरिं देवं विष्णुं जिष्णुं सनातनम् ।
नारायणमजं देवं विष्णुरूपं चतुर्भुजम् ॥
ध्यायन्ति पुरुषं दिव्यमच्युतं ये स्मरन्ति च ।
लभन्ते ते हरिस्थानं श्रुतिरेषा सनातनी ॥
जो सब पापोंको हरनेवाले, दिव्यस्वरूप, व्यापक, विजयी, सनातन, अजन्मा, चतुर्भुज, अच्युत, विष्णुरूप, दिव्य पुरुष श्रीनारायणदेवका पूजन, ध्यान और स्मरण करते हैं, वे श्रीहरिके परम धामको प्राप्त होते हैं—यह सनातन श्रुति है।
इदमेव हि माङ्गल्यमिदमेव धनार्जनम् ।
जीवितस्य फलं चैतद् यद्दामोदरकीर्तनम् ॥
अमित तेजस्वी देवाधिदेव श्रीविष्णुके कीर्तनसे सब पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे दिन निकलनेपर अन्धकार ।
कीर्तनाद् देवदेवस्य विष्णोरमिततेजसः ।
दुरितानि विलीयन्ते तमांसीव दिनोदये ॥
भगवान् दामोदरके गुणोंका कीर्तन ही मङ्गलमय है, वही धनका उपार्जन है तथा वही इस जीवनका फल है ।
गाथां गायन्ति ये नित्यं वैष्णवीं श्रद्धयान्विताः।
स्वाध्यायनिरता नित्यं ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो प्रतिदिन श्रद्धापूर्वक भगवान् श्रीविष्णुकी यशोगाथाका गान करते और सदा स्वाध्यायमें लगे रहते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। विप्रवर
वासुदेवजपासक्तानपि पापकृतो जनान् । नोपसर्पन्ति तान् विप्र यमदूताः सुदारुणाः ॥
भगवान् वासुदेवके नामजपमें लगे हुए मनुष्य पहलेके पापी रहे हों, तो भी भयानक यमदूत उनके पास नहीं भटकने पाते ।
नान्यत् पश्यामि जन्तूनां विहाय हरिकीर्तनम् । सर्वपापप्रशमनं प्रायश्चित्तं द्विजोत्तम ॥
द्विजश्रेष्ठ ! हरिकीर्तनको छोड़कर दूसरा कोई ऐसा साधन मैं नहीं देखता, जो जीवोंके सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाला प्रायश्चित्त हो ।
ये याचिताः प्रहृष्यन्ति प्रियं दत्वा वदन्ति च ।
त्यक्तदानफला ये तु ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो माँगनेपर प्रसन्न होते हैं, देकर प्रिय वचन बोलते हैं तथा जिन्होंने दानके फलका परित्याग कर दिया है, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं।
वर्जयन्ति दिवास्वापं नराः सर्वसहाश्च ये ।
पर्वण्याश्रयभूता ये ते माः स्वर्गगामिनः ॥
जो दिनमें सोना छोड़ देते हैं, सब कुछ सहन करते हैं, पर्वके अवसरपर लोगोंको आश्रय देते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं।
द्विषतामपि ये द्वेषान्न वदन्त्यहितं कदा ।
कीर्तयन्ति गुणांश्चैव ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो अपनेसे द्वेष रखनेवालोंके प्रति भी कभी द्वेषवश अहितकारक वचन मुँहसे नहीं निकालते अपितु सबके गुणोंका ही बखान करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं ।
ये शान्ताः परदारेषु कर्मणा मनसा गिरा।
रमयन्ति न सस्वस्थास्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो परायी स्त्रियोंकी ओरसे उदासीन होते हैं और सत्त्वगुणमें स्थित होकर मन, वाणी अथवा क्रियाद्वारा कभी उनमें रमण नहीं करते, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
यस्मिन् कस्मिन् कुले जाता दयावन्तो यशस्विनः।
सानुक्रोशाः सदाचारास्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जिस किसी कुलमें उत्पन्न होकर भी जो दयालु, यशस्वी, कृपापूर्वक उपकार करनेवाले और सदाचारी होते हैं, वे मनुष्य स्वर्गमें जाते हैं ।
व्रतं रक्षन्ति ये कोपाच्छ्रियं रक्षन्ति मत्सरात् ।
विद्यां मानापमानाभ्यां ह्यात्मानं तु प्रमादतः ॥
मतिं रक्षन्ति ये लोभान्मनो रक्षन्ति कामतः ।
धर्म रक्षन्ति दुःसङ्गात्ते नराः स्वर्गगामिनः ॥
जो व्रतको क्रोधसे, लक्ष्मीको डाहसे, विद्याको मान और अपमानसे, आत्माको प्रमादसे, बुद्धिको लोभसे, मनको कामसे तथा धर्मको कुसङ्गसे बचाये रखते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं।
- ( पद्मपु० पाताल० ९२ । १०-२३)
- कौन सदगुण स्वर्ग ले जाते हैं-
दानं दरिद्रस्य विभोः क्षमित्वं
यूनां तपो ज्ञानवतां च मौनम् ।
इच्छानिवृत्तिश्च सुखोचितानां
दया च भूतेषु दिवं नयन्ति ॥
(पद्मपु० पाताल० ९२ । ५८)
दरिद्रका दान, सामर्थ्यशालीकी क्षमा, नौजवानोंकी तपस्या, - ज्ञानियोंका मौन, सुख भोगनेके योग्य पुरुषोंकी सुखेच्छानिवृत्ति तथा सम्पूर्ण प्राणियोंपर दया-ये सद्गुण स्वर्गमें ले जाते हैं।
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स्वर्ग में कौन जाता है जानें
swarg mein kaun jata hai