banke bihari ji ka mandir vrindavan बांके बिहारी मंदिर के बारे में जानें कैसे प्रकट हुए हैं बिहारी जी निधिवन पर ?

बांके बांके बिहारी मंदिर के बारे में जाने कैसे प्रकट हुए हैं बिहारी जी निधिवन पर
बांके बिहारी मंदिर के बारे में जानें कैसे प्रकट हुए हैं बिहारी जी निधिवन पर ?
मित्रों आज हम लोग अपने इस India drishya साइट पर भारत देश के उत्तर प्रदेश में मथुरा जिले के अंतर्गत वृंदावन पर स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर के बारे में जानेंगे |
मित्रों जब भी ब्रज का नाम आता है तो वृंदावन जरूर याद आता है तथा वृंदावन का नटखट कन्हैया तो आंखों में आ जाता है | तो उसी ब्रज धाम वृंदावन पर स्थित सुप्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी के विषय में जानकारी प्राप्त करेंगे हम लोग |

बांके बिहारी जी का मंदिर बहुत प्राचीन मंदिर है और अगर आप वृंदावन जाकर बांके बिहारी की बांकी छटा को देखने से वंचित रह गए हैं तो समझो वह आपका वृंदावन जाना निरर्थक है, जब हमारे जीवन में कई जन्मों के पुण्य एकत्रित होते हैं तब कहीं जाकर हमें ऐसे पवित्र स्थान पर जाने को मिलता है |
आइए अब हम जानेंगे कि बांके बिहारी मंदिर पर जो कन्हैया जी हैं,

उनकी जो प्रतिमा है वह किस सज्जन ने तराशा है | 

तो आपको बता दें कि बांके बिहारी जी की मूर्ति किसी शिल्पकार ने नहीं बनाया , यह बांके बिहारी जी स्वयं प्रकट हुए हैं |अब आप विचार करेंगे कि ऐसे कैसे प्रकट हो सकते हैं तो बिल्कुल भगवान ऐसे ही प्रकट होते हैं हां प्रगट होने के पीछे लीला होती है तो आइए आज हम लीला को श्रवण करेंगे |

इसके पीछे एक रहस्य है वह आप लोग भी जाने वैसे आप सभी भगवत प्रेमी श्री हरिदास जी का नाम तो सुना होगा अगर नहीं तो उनके चेले तानसेन के बारे में जरूर जानते होंगे वह स्वर सम्राट के नाम से जाने जाते थे, तो उन्हीं के गुरु थे स्वामी श्री हरिदास जी महाराज |

यह भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और संगीत के महान आचार्य थे कहा जाता है कि यह ललिता सखी ही श्री हरिदास जी के रूप में ही आयी हैं , वही ललिता सखी जो श्री राधा रानी के परम प्रिय सखी हैं और वीणा वादन में जो परम प्रवीण हैं | तो हरिदास जी महाराज वृंदावन के निधिवन में रहा करते थे और संगीत के द्वारा कन्हैया के भावों  को गाया करते थे इनका भाव ऐसा दिव्य की कन्हैया भागता भागता हरिदास जी कुटिया में आ जाता था |

एक बात और हम भगवान को जिस रूप में भजते हैं वह कन्हैयां ठाकुर वही रूप धारण कर लेता है | 

हरिदास जी का जो भाव है कन्हैया को लेकर वह बाल कृष्ण के रूप में है मतलब हरिदास जी कन्हैया को छोटे बच्चे के रूप में देखते हैं , तो कन्हैया उसी छोटे से नटखट रूप में आकर हरिदास जी से कहते थे बहुत प्यारा गाते हैं आप और सुनाइए गा कर के तोतरि वाणी सुनकर हरिदास जी मानो कृत कृत्य हो जाते थे |

और जिस परमात्मा को बड़े-बड़े ध्यानी योगी लोग भजते हैं और उनकी एक झलक भी बड़े उद्योग से पाते हैं | धन्य है श्री हरिदास जी की भक्ति जो तीनों लोकों का स्वामी उनके पास बिना बुलाए दौड़े आता है , इतना ही नहीं जब शाम हो जाती थी तो हरिदास जी कन्हैया को जाने को कहते थे कन्हैया मुस्कुराते हुए जिद करने लगते बाबा एक बार और गाकर सुना दो |

आपको आश्चर्य होगा जानकर कि हरिदास जी के छड़ी मारकर भगाने पर भी कन्हैया हरिदास जी के पास ही रहते थे उन्हें छोड़कर नहीं जाते थे | अब आप विचार करेंगे कि हरिदास जी क्यों भगाते थे तो देखिए हरिदास जी को ऐसा लगता था, वह ऐसा मानते थे कि कन्हैया अभी छोटा है, उसके मां बाबा उसकी बाट देख रहे होंगे उनका ऐसा भाव है | और श्री बांके बिहारी जी का प्राकट्य श्री हरिदास जी ने ही निधिवन में किया जो कि अभी वर्तमान पर बांके बिहारी जी के मंदिर पर विराजमान है |

और भगवान रात्रि में आज भी रास करने जाते हैं | 

आपको एक सच्ची घटना बता दें कि मंदिर से निकल कर एक बार रात्रि में भगवान श्री कृष्ण रास करने आए और स्वामी हरिदास जी के बिस्तर पर उनकी रजाई ओढ़ कर सो गई प्रातः काल स्वामी हरिदास जी देखते हैं कि हमारे बिस्तर पर कोई सोया हुआ है तो है आवाज लगाते हैं कि हमारी रजाई ओढ़ कर कौन सो रहा है ?

स्वामी हरिदास जी की आवाज को सुनकर कन्हैया वहां से अंतर्ध्यान हो जाते हैं लेकिन भगवान श्री कृष्ण की बांसुरी और उनके चूड़ामणि जो थे वही छूट जाते हैं , जल्दी-जल्दी में चले जाते हैं |

यहां पुजारी बांके बिहारी जी के मंदिर को खोलते हैं और वहां का दृश्य देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं कि ठाकुर जी के हाथ में बंसी और उनके हाथों पर चूड़ामणि तो है ही नहीं अब पुजारी जी इस दुविधा में पड़ जाते हैं कि आखिर जब ताला बंद था तो यह बंसी और चूड़ामणि गायब कैसे हुई ? दुविधा को लेकर प्रातः काल वह निधि बन जाते हैं स्वामी जी के चरणों में प्रणाम करते हैं , स्वामी जी से सारी घटना का वर्णन करते हैं !

स्वामी हरिदास जी वृद्ध हैं आंखों में कम दिखाई देता था 

उन्होंने पुजारी से कहा कि देखो भाई मैं समझ तो नहीं पाया कि कौन सोया था मेरे बिस्तर पर, परंतु प्रातः कल जब मैं आया तो सो रहा था कोई और मेरे कहने पर वह भाग गया , परंतु उसका कुछ सामान छूट गया है जरा जाकर देखो वह क्या है |

जैसे ही पुजारी जाते हैं स्वामी हरिदास जी के बिस्तर पर देखते हैं कि वही बांसुरी और वही मणिमय कंगन भगवान श्री कृष्ण के वहां पर रखे हुए हैं , विद्यमान हैं | यह दृश्य देखकर उन्हें विश्वास हो गया कि भगवान श्रीकृष्ण आज भी रात्रि में रास करने जाते हैं , उसी दिन से उन्होंने प्रातः काल की आरती भगवान की जो मंगल आरती है नहीं करते  |

इसीलिए बांके बिहारी मंदिर में प्रातः काल की मंगला आरती नहीं होती और भगवान श्री कृष्ण के दर्शन 9:00 बजे से लेकर 11:00 बजे तक होते हैं और शाम को 5:00 बजे से लेकर 9:00 बजे रात तक होते हैं |

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