*।।जय जय रघुवीर समर्थ।।*
रामचरितमानस नवधा भक्ति हिंदी में
वनवास काल में प्रभु श्री राम जी श्री सीता माता को खोजते हुए माता शबरी के आश्रम में पहुंच जाते हैं। माता शबरी की अनन्य भाव भक्ति देखकर कृपानिधि भगवान प्रसन्न हो जाते हैं और माता शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश करते हैं-
*नवधा भक्ति कहउँ तोहि पाहीं।*
*सावधान सुनु धरु मन माहीं।।*
*श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्।*
*अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥*
*श्रवण:~*
ईश्वर की लीला, कथा, महत्व, शक्ति, स्रोत इत्यादि को परम श्रद्धा सहित अतृप्त मन से निरंतर सुनना।
*कीर्तन:~*
ईश्वर के गुण, चरित्र, नाम, पराक्रम आदि का आनंद एवं उत्साह के साथ कीर्तन करना।
*स्मरण:~*
निरंतर अनन्य भाव से परमेश्वर का स्मरण करना, उनके महात्म्य और शक्ति का स्मरण कर उस पर मुग्ध होना।
*पाद सेवन:~*
ईश्वर के चरणों का आश्रय लेना और उन्हीं को अपना सर्वस्व समझना।
*अर्चन:~*
मन, वचन और कर्म द्वारा पवित्र सामग्री से ईश्वर के चरणों का पूजन करना।
*वंदन:~*
भगवान की मूर्ति को अथवा भगवान के अंश रूप में व्याप्त भक्तजन, आचार्य, ब्राह्मण, गुरूजन, माता-पिता आदि को परम आदर सत्कार के साथ पवित्र भाव से नमस्कार करना या उनकी सेवा करना।
*दास्य:~*
ईश्वर को स्वामी और अपने को दास समझकर परम श्रद्धा के साथ सेवा करना।
*सख्य:~*
ईश्वर को ही अपना परम मित्र समझकर अपना सर्वस्व उसे समर्पण कर देना तथा सच्चे भाव से अपने पाप पुण्य का निवेदन करना।
*आत्मनिवेदन:~*
अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।
रामचरितमानस नवधा भक्ति हिंदी में ramcharitmanas navdha bhakti hindi mein
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