[गैवीनाथ मंदिर बिरसिंहपुर]
मित्रों आज हम India-drishya पर बिरसिंहपुर वाले गैवीनाथ बाबा भगवान भोलेनाथ के शिवलिंग के बारे में जानेंगे |
यह गैवीनाथ धाम भारत देश के मध्य प्रदेश-सतना जिले में स्थित है | भगवान शिव का यह दिव्य मंदिर सतना से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर है और यहां का जो शिवलिंग है वह अपने आप में रहस्यमय है, क्योंकि हम लोग प्राय: देखते हैं कि कोई मूर्ति या प्रतिमा जब खंडित हो जाती है तो हम उसकी पूजा आरती नहीं करते | उसे गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन कर देते हैं और नवीन प्रतिमा की स्थापना कर पूजा करते हैं | लेकिन यह जो बिरसिंहपुर नामक स्थान में भगवान शंकर का मंदिर है वहां गैवीनाथ नाम से विख्यात शिवलिंग खंडित है फिर भी उनकी दिव्य पूजा आरती होती है और यह पूरे भारतवर्ष के भक्तों का आस्था का केंद्र है,यहां हजारों की संख्या में भक्तजन आते हैं,
और बाबा गैवीनाथ के दर्शन कर, उन्हें स्नान करा (जल चढ़ाकर) कृतकृत्य हो जाते हैं | आपको बता दें कि गैवीनाथ धाम में सोमवार को भक्तों का तांता लगा रहता है और श्रावण मास में तो यहां शिव भक्तों की आस्था देखती बनती है | क्योंकि श्रावण मास में शिव भक्तों का मानो जन सैलाब उमड़ जाता है अपने भोलेनाथ बाबा के दर्शन करने हेतु |एक बात से हम आप लोग को और अवगत करा दें कि यह शिवलिंग कई हजार सालों पुराना है इसका इतिहास हमें पद्मपुराण के पाताल खंड से प्राप्त होता है | कि--
त्रेता युग में इस जगह का नाम बिरसिंहपुर के जगह देवपुर था
और यहां के राजा थे वीर सिंह और यह बड़े प्रतापी राजा थे तथा इनके रोम रोम में शिव बसते थे | इतने बड़े शिव भक्त थे यह कि अपने घोड़े में बैठकर प्रतिदिन देवपुर ( बिरसिंहपुर ) से उज्जैन महाकालेश्वर के दर्शन करने हेतु जाया करते थे | समय बीतता गया कई साल इसी प्रकार व्यतीत हुए और राजा वीर सिंह का शरीर बुढ़ापे का शिकार हो गया, अब प्रतिदिन उज्जैन जाने में असमर्थ हो गए थे तो उन्होंने आखिरी बार बाबा महाकालेश्वर के दर्शन करने गए और उनसे प्रार्थना की कि हे महादेव इस भक्त के ऊपर कृपा करो | अब रोज आपके दर आने में असमर्थ है तो कृपा करके आप ही पधारो इस भक्त के यहां, जिससे कि मैं आपका दर्शन कर सकूं |ऐसी प्रार्थना करके राजा वीर सिंह अपने राज्य को लौट आए |
एकदिन राजा वीर सिंह के स्वप्न में भगवान शंकर ने दर्शन दिया और कहा कि मैं तुम्हारी प्रार्थना से प्रसन्न हूं और मैं तुम्हारे नगर देवपुर में प्रगट हूंगा और यहां भगवान शंकर शिवलिंग के रूप में गैवी नामक व्यक्ति के घर से निकलते लेकिन गैबी की मां पत्थर समझकर अपने मुसल से उसे अंदर कर देती कूटकर | यही क्रम कई दिनों तक चलता रहा तो फिर से भोलेनाथ ने राजा वीर सिंह को सपने में आए और बोले कि मैं देवपुर में आना चाहता हूं लेकिन गैवी मुझे बाहर निकलने ही नहीं देता ? प्रतिदिन उसकी मां अपने मुसल के द्वारा मुझे नीचे की तरफ ठोक देती है तो मुझे बाहर आने दो ! यह कहकर भगवान् शंकर अंतर्ध्यान हो गये |प्रात: काल हुआ तो राजा ने गैवी को बुलाकर सारी बात बताई तो गैवी बहुत प्रसन्न हुआ कि मैं बहुत बड़ा बड़भागी हूं जो भगवान शंकर मेरे घर से निकले हैं और फिर गैवी के यहां शिवलिंग निकला जिसके कारण यह गैवीनाथ नाम से उस शिवलिंग की देश भर में ख्याति हुयी |
राजा प्रसन्न होकर गैवी को खूब धन व रहने के लिए उत्तम स्थान प्रदान किया |
राजा वीर सिंह गैवी के घर के जगह दिव्य शिव मंदिर की स्थापना की , और जैसे-जैसे समय बीतता गया और जो भी राजा आते उस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाते गए |
मित्रों यह गैवीनाथ बाबा कलयुग में हर मनोकामना को पूर्ण करने वाले हैं, अपने भक्तों की हर इच्छा को पूर्ण करते हैं |