हम कबसे भटक रहे हैं ?
हम कबसे भटक रहे हैं ? जन्म-मृत्युके चक्रमें हम कबसे पड़े हैं ? कोई गणना नहीं है। सृष्टि अनादि है । अनादि कालसे जीव चौरासी लाख योनियोंमें भटक रहा है।
भगवान्की अहैतुकी कृपासे मनुष्य-जीवन प्राप्त हुआ। एक महान् अवसर दिया उस करुणावरुणालयने जीवको । इस अवसरका हम सदुपयोग करेंगे या नहीं—यह हमारे विचार करनेकी बात है। क्योंकि मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है।
जीवनकी-मनुष्य-जीवनकी दो ही गतियाँ हैं-जन्म-मृत्युके चक्रसे छुटकारा प्राप्त कर लेना या फिर उसीमें भटकना।
चौरासी लाख योनियाँ-जीवको उसके कर्मानुसार एक-एक योनिमें लाख-लाख बार भी जन्म लेना पड़ सकता है । चौरासी लाख योनियाँएक ही उनमेंसे है मनुष्ययोनि । मानव-जीवनके गिने-चुने वर्ष केवल यही अवसर है, जब जीव आवागमनके अनादि चक्रसे छुटकारा पा सके ।
यह अवसर कहीं निकल गया-वही जन्म-मृत्युका चक्र और कबतक, किस अकल्पनीय कालतक वह चलता रहेगा-कोई कह नहीं सकता। ___ काम, क्रोध, लोभ और मोह-ये चारों नरकके द्वार हैं ।
इनमेंसे किसीमें पैर पड़ा और गिरे नरकमें । नरक-नरककी दारुण यन्त्रणा और केवल मनुष्य ही वहाँ पहुँचनेकी सामग्री प्रस्तुत करता है । केवल मनुष्य ही तो कर्म करने में स्वतन्त्र है । अन्य प्राणी तो भोगयोनिके प्राणी हैं। वे तो भोगके द्वारा अपने अशुभ कर्मोंका नाश कर रहे हैं ।
वे नवीन कर्मोंका उपार्जन नहीं करते। ____ मनुष्य कर्मयोनिका प्राणी है। मनुष्य कर्म करनेमें स्वतन्त्र है । मनुष्य ही है जो कर्म-संस्कारोंका उपार्जन करता है । उसे सोचना है, वह कैसा उपार्जन करेगा। उसकी दो गतियाँ हो सकती हैंबन्धन-नरक या फिर मोक्ष-भगवद्धाम ।
काम, क्रोध, लोभ, मोह–इनमें लगनेपर मनुष्य नरक जायगा । संसारके भोगोंमें आसक्त हुआ और नरक धरा है। दूसरी गति है मनुष्यकी-मनुष्यताकी परम सफलता उसीमें है । अनादि कालसे चलनेवाली मृत्युसे छुटकारा पा जाना—जन्म-मृत्युके चक्रसे परित्राण-मोक्ष ।
सत्सङ्ग, परोपकार, वैराग्य और भजनइसका परिपाक है भगवद्धामकी प्राप्ति । मोक्षका यही प्रशस्त मार्ग है। मनुष्यकी मनुष्यता इसीसे सफल होती है।
नरक या भगवद्धाम-गतियाँ तो ये दो ही हैं ।
मनुष्यको यदि सचमुच नरकमें नहीं पड़ना है, उसे दुःखसे आत्यन्तिक छुटकारा चाहिये, अखण्ड आनन्द उसे अभीष्ट है तो उसे अपनाना है सत्सङ्ग, परोपकार, वैराग्य, भगवद्भजन ।
हम कबसे भटक रहे हैं ?
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