F परदुःखकातर- महाराज रंतिदेव Mahraj rantidev /bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit - bhagwat kathanak
परदुःखकातर- महाराज रंतिदेव Mahraj rantidev /bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit

bhagwat katha sikhe

परदुःखकातर- महाराज रंतिदेव Mahraj rantidev /bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit

 परदुःखकातर- महाराज रंतिदेव Mahraj rantidev /bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit
 परदुःखकातर- महत्त्वाकाङ्क्षा 
 महाराज रंतिदेव bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit
परदुःखकातर- महाराज रंतिदेव Mahraj rantidev /bhagwat sanshkrit shlok hindi arth sahit
न कामयेऽहं गतिमीश्वरात् परा
मष्टद्धियुक्तामपुनर्भवं वा। 
आर्ति प्रपद्येऽखिलदेहभाजा
मन्तःस्थितो येन भवन्त्यदुःखाः ॥ 
मैं भगवान्से आठों सिद्धियोंसे युक्त परमगति नहीं चाहता । और तो क्या, मैं मोक्षकी भी कामना नहीं करता।

मैं चाहता हूँ तो केवल यही कि मैं सम्पूर्ण प्राणियोंके हृदयमें स्थित हो जाऊँ और उनका सारा दुःख मैं ही सहन करूँ, जिससे और किसी भी प्राणीको दुःख न हो। 

श्क्षुत्तटश्रमो गात्रपरिश्रमश्च
दैन्यं कुमः शोकविषादमोहाः । 
सर्वे निवृत्ताः कृपणस्य जन्तो
जिजीविषोर्जीवजलार्पणान्मे
यह दीन प्राणी जल पी करके जीना चाहता था, जल दे देनेसे इसके जीवनकी रक्षा हो गयी । अब मेरी भूख-प्यासकी पीड़ा, शरीरकी शिथिलता, दीनता, ग्लानि, शोक, विषाद और मोह—ये सब-के-सब जाते रहे । मैं सुखी हो गया ।'
(श्रीमद्भा० ९ । २१ । १२-१३)

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3