अतिथि सत्कार
Hospitality in h indi
- अतिथि है सबसे महान
गृहस्थानां परो धर्मो नान्योऽस्त्यतिथिपूजनात् । अतिथेनं च दोषोऽस्ति तस्यातिक्रमणेन च ॥
गृहस्थोंके लिये अतिथि-सत्कारसे बढ़कर दूसरा कोई महान् धर्म नहीं है। अतिथिसे महान् कोई देवता नहीं है, अतिथिके उल्लङ्घनसे बड़ा भारी पाप होता है ।
- अतिथि को निराश कभी ना करें
अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात्प्रतिनिवर्तते ।
स दवा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति ॥
जिसके घरसे अतिथि निराश होकर लौट जाता है, उसे वह अपना पाप देकर और उसका पुण्य लेकर चल देता है ।
- अतिथि का सत्कार जो नहीं करता
सत्यं तथा तपोऽधीतं दत्तमिष्टं शतं समाः ।
तस्य सर्वमिदं नष्टमतिथि यो न पूजयेत् ॥
जो अतिथिका आदर नहीं करता, उसके सौ वर्षों के सत्य, तप, स्वाध्याय, दान और यज्ञ आदि सभी सत्कर्म नष्ट हो जाते हैं।
दूरादतिथयो यस्य गृहमायान्ति निर्वृताः ।
स गृहस्थ इति प्रोक्तः शेषाश्च गृहरक्षिणः ॥
जिसके घरपर दूरसे अतिथि आते हैं और सुखी होते हैं, वही गृहस्थ कहा गया है, शेष सब लोग तो गृहके रक्षकमात्र हैं।
( स्कन्द० पु० ना० उ० १७६ । ४-७)