sadbhavna arth in hindi
शक्र भुङ्क्ते नृपो राज्यं प्रभावेण कुटुम्बिनाम् ।
यजते च महायज्ञैः कर्म पौत करोति च ॥
राजा अपने कुटुम्बियोंके ही प्रभावसे राज्य भोगता प्रजावर्ग भी राजाका कुटुम्बी ही है । उन्हींके सहयोगसे राजा बड़े-बड़े यज्ञ करता, पोखरे खुदवाता और बगीचे आदि लगवाता है ।
तच्च तेषां प्रभावेण मया सर्वमनुष्ठितम् ।
उपकतन् न सन्त्यक्ष्ये तानहं स्वर्गलिप्सया ॥
यह सब कुछ मैंने अयोध्यावासियोंके प्रभावले किया है। अतः स्वर्गके लोभमें पड़कर मैं अपने उपकारियोंका त्याग नहीं कर सकता।
तस्माद् यन्मम देवेश किंचिदस्ति सुचेष्टितम् ।
दत्तमिष्टमथो जप्तं सामान्यं तैस्तदस्तु नः ।।
देवेश ! यदि मैंने कुछ भी पुण्य किया हो, दान, यज्ञ अथवा जपका अनुष्ठान मुझसे हुआ हो, तो सबका फल उन सबके साथ ही मुझे मिले । उसमें उनका समान अधिकार हो ।
( मार्क० ८ । २५७-२५९ )