F सद्भावना का स्वरूप sadbhavna arth in hindi - bhagwat kathanak
सद्भावना का स्वरूप sadbhavna arth in hindi

bhagwat katha sikhe

सद्भावना का स्वरूप sadbhavna arth in hindi

सद्भावना का स्वरूप sadbhavna arth in hindi
 सद्भावना का स्वरूप 
सद्भावना का स्वरूप sadbhavna arth in hindi
sadbhavna arth in hindi
शक्र भुङ्क्ते नृपो राज्यं प्रभावेण कुटुम्बिनाम् । 
यजते च महायज्ञैः कर्म पौत करोति च ॥ 
राजा अपने कुटुम्बियोंके ही प्रभावसे राज्य भोगता प्रजावर्ग भी राजाका कुटुम्बी ही है । उन्हींके सहयोगसे राजा बड़े-बड़े यज्ञ करता, पोखरे खुदवाता और बगीचे आदि लगवाता है । 

तच्च तेषां प्रभावेण मया सर्वमनुष्ठितम् । 
उपकतन् न सन्त्यक्ष्ये तानहं स्वर्गलिप्सया ॥ 
यह सब कुछ मैंने अयोध्यावासियोंके प्रभावले किया है। अतः स्वर्गके लोभमें पड़कर मैं अपने उपकारियोंका त्याग नहीं कर सकता। 

तस्माद् यन्मम देवेश किंचिदस्ति सुचेष्टितम् । 
दत्तमिष्टमथो जप्तं सामान्यं तैस्तदस्तु नः ।।
देवेश ! यदि मैंने कुछ भी पुण्य किया हो, दान, यज्ञ अथवा जपका अनुष्ठान मुझसे हुआ हो, तो सबका फल उन सबके साथ ही मुझे मिले । उसमें उनका समान अधिकार हो ।
( मार्क० ८ । २५७-२५९ ) 

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3