F भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- श्रीरामदासजी- bhaktmal katha lyrics - bhagwat kathanak
भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- श्रीरामदासजी- bhaktmal katha lyrics

bhagwat katha sikhe

भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- श्रीरामदासजी- bhaktmal katha lyrics

भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- श्रीरामदासजी-  bhaktmal katha lyrics

भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित

भक्तमालमें वर्णित भगवद्भक्तोंका पावन चरित- परमभक्ता श्रीलालमतीजी bhaktmal katha lyrics

श्रीरामदासजी-

श्रीरामदासजी सातल परम ससील बचन कोमल मुख निकसै। 

भक्त उदित रबि देखि हृदय बारिज जिमि बिकसै॥

आत आनंद मन उमँगि सन्त परिचर्जा करर्ड।

चरन धोय दंडौत बिबिधि भोजन बिस्तरई॥ 

बछबन निवास बिस्वास हरि जुगल चरन उर जगमगत। 

श्री (रामदास) रस रीति सों भली भाँति सेवत भगत॥१९६॥

श्रीरामदासजी बड़े मधुर भावसे भक्तोंकी सेवा करते थे। इनके मुखसे शीतल, कोमल और नम्रतापर्ण वचन ही निकलते थे। सूर्योदय होते ही जैसे कमल विकसित हो जाते हैं, उसी प्रकार भक्तको देखकर आपका हृदय खिल उठता था। 

मनमें अपार उत्साह रखकर बड़ी रुचिके साथ सन्तोंकी विविध प्रकारसे सेवा-शुश्रूषा करते थे। आते ही सन्तोंके श्रीचरणोंको धोकर चरणोदक लेते, उन्हें साष्टांग दण्डवत् करते; तत्पश्चात् अनेक प्रकारके उत्तम-से-उत्तम भोजन-प्रसाद पवाते । 

बछवनमें आपका निवास स्थान था, भगवान्में आपका अटल विश्वास था और उन्हींके युगल श्रीचरणकमल आपके हृदय-भवनमें जगमगाते रहते थे॥१९६॥

श्रीरामदासजीके विषयमें विशेष विवरण इस प्रकार है-

किसी सन्तने श्रीरामदासजीके भक्ति-भावकी प्रशंसा सुनी तो वे इनकी भक्तिनिष्ठाको देखनेके लिये इनके आश्रमपर आये। संयोगवश ये वहीं बैठे थे। 

वे सन्त इन्हींसे पूछने लगे कि 'श्रीरामदासजी कौन हैं ?' सन्तको आया देखकर श्रीरामदासजी जल्दीसे उठे और उन्होंने सन्तके चरण धोकर चरणामृत लिया। इसके बाद साष्टांग दण्डवत् करके बोले-'आप विराजो, रामदास अभी आता है।' 

आगन्तुक सन्तने कहा-'पहले हमें यह बतलाइये कि रामदासजी कहाँ हैं, उनसे मिलनेकी मुझे तीव्र लालसा है और यहाँ आनेका हमारा यही मुख्य प्रयोजन है। 

उनसे मिलकर हमें शीघ्र ही चले जाना है।' श्रीरामदासजीने उत्तर दिया-'पहले आप चलकर प्रसाद लीजिये, फिर रामदास आ जायगा।' सन्तने कहा–'नहीं, पहले रामदासजीको बुलाकर उनका दर्शन करा दीजिये। 

उसके बाद ही मैं प्रसाद पाऊँगा।' इस प्रकार उनका आग्रह देखकर श्रीरामदासजीने कहा- आप सन्तोंका सेवक रामदास यही है, यह आपका ही आश्रम है, कृपा करके आप अपने आश्रममें पधारिये और प्रसाद पाइये।' यह सुनते ही वे सन्त श्रीरामदासजीके चरणोंमें गिर पड़े। उनका हृदय आनन्दस भर गया, वे फूले नहीं समा रहे थे। 

वे कहने लगे–'आपके सुयशकी चाँदनी सर्वत्र फैली है, उससे सभी लोगोंको सुख-शान्ति मिल रही है। आपका दर्शन करके मैं कृतार्थ हो गया। मेरे हृदयमें भी प्रकाश हो गया।'

श्रीप्रियादासजीने इस घटनाका अपने एक कवित्तमें इस प्रकार वर्णन किया है-

सुनि एक साधु आयौ, भक्ति भाव देखिबे कों, बैठे रामदास, पूछ रामदास कौन है?'।

 उठे आप धोए पाँव, आवै रामदास अब, 'रामदास कहाँ? मेरे चाह और गौन है'॥ '

चलो जू प्रसाद लीजै दीजै रामदास आनि', 'यही रामदास, पग धारौ निज भौन है'। 

लपटानौ पाँयन सो चायन समात नाहिं, भायनि सों भर्यो हिये, छाई जस जौन्ह है॥६२४॥

श्रीरामदासजीकी कन्याका विवाह था। उस अवसरपर सबको बड़ा भारी उत्साह हुआ। अनेक प्रक पक्वान्न बाराती और घरातियों के लिये बनाकर कोठेमें रख दिये गये। इनके पत्र और नाती पक्वान्नों की रखवाली  करने लगे। 

उन्होंने कोठेमें ताला बन्द कर दिया; क्योंकि उनके मनमें डर था कि कहीं बाबाजी सब सामान साधु संतो को  न बाट  दें।

अवसर पाकर श्रीरामदासजीने दूसरी ताली लगाकर कोठेका ताला खोल लिया। आप किसीसे डरते न थे । सन्तजन पधारे, आपने पोटली बंधवा दी और कहा कि स्थानमें ले जाकर आपलोग भोग लगाइये और पाइये ।  सन्त-भगवन्तको पक्वान्नोंकी पोटलियाँ बँधवाकर आपने महान् सुख प्राप्त किया। 

Ads Atas Artikel

Ads Center 1

Ads Center 2

Ads Center 3