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धर्म आचरण का महत्त्व dharma aacharan ka mahatva hindi mein

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धर्म आचरण का महत्त्व dharma aacharan ka mahatva hindi mein

धर्म आचरण का महत्त्व dharma aacharan ka mahatva hindi mein

  •  धर्माचरणकी महत्ता 

धर्म आचरण का महत्त्व dharma aacharan ka mahatva hindi mein
धर्म आचरण का महत्त्व 
निबन्धनी ह्यर्थतृष्णेह पार्थ तामिच्छतां बाध्यते धर्म एव । 
धर्म तु यः प्रवृणीते स बुद्धः कामे गृध्नो हीयतेऽर्थानुरोधात् ॥ 
पार्थ ! इस जगत्के भीतर धनकी तृष्णा बन्धनमें डालने वाली है, उसमें आसक्त होनेवाले मनुष्योंके धर्ममें ही बात आती है। जो धर्मको अङ्गीकार करता है, वही ज्ञानी है। भोगोंकी इच्छा करनेवाला मानव अर्थसिद्धिसे भ्रष्ट हो जाता है ।

धर्म कृत्वा कर्मणां तात मुख्यं महाप्रतापः सवितेव भाति ।
हीनो हि धर्मेण महीमपीमां लब्ध्वा नरः सीदति पापबुद्धिः ॥
तात ! धर्माचरण ही प्रधान कर्म है, इसका पालन करके मनुष्य सूर्यकी भाँति महाप्रतापी रूपमें प्रकाशित होता है । जो धर्मसे हीन है, वह इस सम्पूर्ण पृथ्वीका राज्य पाकर भी पापमें मन लगानेके कारण महान् कष्ट भोगता है।
( महा० उद्योग० २७ । ५-६)

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