- श्रीकृष्णकी महिमा
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः ॥
श्रीकृष्ण तो वहीं रहते हैं जहाँ सत्य, धर्म, लजा और सरलताका निवास होता है और जहाँ श्रीकृष्ण रहते हैं, वहीं विजय रहती है।
पृथिवीं चान्तरिक्षं च दिवं च पुरुषोत्तमः ।
विचेष्टयति भूतात्मा क्रीडन्निव जनार्दनः ।।
वे सर्वान्तर्यामी पुरुषोत्तम जनार्दन मानो क्रीडासे ही पृथ्वी, आकाश और स्वर्गलोकको प्रेरित कर रहे हैं।
कालचक्रं जगच्चक्रं युगचक्रं च केशवः ।
आत्मयोगेन भगवान् परिवर्तयतेऽनिशम् ॥
ये श्रीकेशव ही अपनी चिच्छक्तिसे अहर्निश कालचक्र, जगच्चक्र और युगचक्रको घुमाते रहते हैं।
कालस्य च हि मृत्योश्च जङ्गमस्थावरस्य च ।
ईष्टे हि भगवानेकः सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥
मैं सच कहता हूँ—एकमात्र वे ही काल, मृत्यु और सम्पूर्ण स्थावर-जंगम जगत्के स्वामी है तथा अपनी मायाके द्वारा लोकोंको मोहमें डाले रहते हैं।
तेन वंचयते लोकान् मायायोगेन केशवः ।
ये तमेव प्रपद्यन्ते न ते मुह्यन्ति मानवाः ॥
श्रीकृष्ण तो वहीं रहते हैं जहाँ सत्य, धर्म, लजा और सरलताका निवास होता है और जहाँ श्रीकृष्ण रहते हैं, वहीं विजय रहती है।
पृथिवीं चान्तरिक्षं च दिवं च पुरुषोत्तमः ।
विचेष्टयति भूतात्मा क्रीडन्निव जनार्दनः ।।
वे सर्वान्तर्यामी पुरुषोत्तम जनार्दन मानो क्रीडासे ही पृथ्वी, आकाश और स्वर्गलोकको प्रेरित कर रहे हैं।
कालचक्रं जगच्चक्रं युगचक्रं च केशवः ।
आत्मयोगेन भगवान् परिवर्तयतेऽनिशम् ॥
ये श्रीकेशव ही अपनी चिच्छक्तिसे अहर्निश कालचक्र, जगच्चक्र और युगचक्रको घुमाते रहते हैं।
कालस्य च हि मृत्योश्च जङ्गमस्थावरस्य च ।
ईष्टे हि भगवानेकः सत्यमेतद् ब्रवीमि ते ॥
मैं सच कहता हूँ—एकमात्र वे ही काल, मृत्यु और सम्पूर्ण स्थावर-जंगम जगत्के स्वामी है तथा अपनी मायाके द्वारा लोकोंको मोहमें डाले रहते हैं।
तेन वंचयते लोकान् मायायोगेन केशवः ।
ये तमेव प्रपद्यन्ते न ते मुह्यन्ति मानवाः ॥
जो लोग केवल उन्हींकी शरण ले लेते हैं, वे ही मोहमें नहीं पड़ते।
(महा० उद्योग० ६८ । ९ -१० ,१ २ -१३ ,-१५ )
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिर्मतिर्मम ॥
तत्र श्रीविजयो भूतिधुंवा नीतिर्मतिर्मम ॥
( गीता १८ । ७८ )
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुर्धारी अर्जुन हैं, वहीं श्री, विजय, विभूति और निश्चल नीति है—यह मेरा मत है।
जहाँ योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीवधनुर्धारी अर्जुन हैं, वहीं श्री, विजय, विभूति और निश्चल नीति है—यह मेरा मत है।