पठकाः पाठकाश्चैव• श्लोक-
पठकाः पाठकाश्चैव ये नान्ये शास्त्रचिन्तकाः ।
सर्वे व्यसनिनो मूर्खा यः क्रियावान् स पण्डितः ॥
पठकाः पाठकाश्चैव ये नान्ये शास्त्रचिन्तकाः ।
सर्वे व्यसनिनो मूर्खा यः क्रियावान् स पण्डितः ॥
(महा० वन० ३१३ । ११० )
पठकाः पाठकाश्चैव• श्लोकार्थ-
पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले तथा दूसरे-दूसरे जो शास्त्रविचारक लोग हैं, वे सभी यदि व्यसनी हैं ( किसी व्यसनमें आसक्त हैं ) तो मूर्ख हैं; जो कर्मठ है (शास्त्राज्ञाके अनुसार कार्य करनेवाला है ), वही पण्डित है।
पठकाः पाठकाश्चैव• श्लोकार्थ-
पढ़नेवाले, पढ़ानेवाले तथा दूसरे-दूसरे जो शास्त्रविचारक लोग हैं, वे सभी यदि व्यसनी हैं ( किसी व्यसनमें आसक्त हैं ) तो मूर्ख हैं; जो कर्मठ है (शास्त्राज्ञाके अनुसार कार्य करनेवाला है ), वही पण्डित है।
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