धर्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो• श्लोक-
धर्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो नास्तिको मूर्ख उच्यते ।
कामः संसारहेतुश्च हृत्तापो मत्सरः स्मृतः ॥
धर्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो नास्तिको मूर्ख उच्यते ।
कामः संसारहेतुश्च हृत्तापो मत्सरः स्मृतः ॥
(महा० वन० ३१३ । ९८ )
धर्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो• श्लोकार्थ-
जो धर्मका ज्ञाता है, उसे ही पण्डित जानना चाहिये । जो नास्तिक है—ईश्वर और परलोककी सत्तापर विश्वास नहीं करता, वही मूर्ख कहलाता है। जो संसार-बन्धनका कारण है, उसीका नाम काम है और मानसिक संताप ही मत्सर माना गया है।
धर्मज्ञः पण्डितो ज्ञेयो• श्लोकार्थ-
जो धर्मका ज्ञाता है, उसे ही पण्डित जानना चाहिये । जो नास्तिक है—ईश्वर और परलोककी सत्तापर विश्वास नहीं करता, वही मूर्ख कहलाता है। जो संसार-बन्धनका कारण है, उसीका नाम काम है और मानसिक संताप ही मत्सर माना गया है।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके संस्कृत के बेहतरीन और चर्चित श्लोकों की लिस्ट [सूची] देखें-
{ नीति श्लोक व शुभाषतानि के सुन्दर श्लोकों का संग्रह- हिंदी अर्थ सहित। }