पुस्तकस्था तु या विद्या श्लोक-
पुस्तकस्था तु या विद्या श्लोकार्थ-
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम् |कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ||
पुस्तक में रखी विद्या तथा दूसरे के हाथ में गया धन—ये दोनों ही ज़रूरत के समय हमारे किसी भी काम नहीं आया करते |
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