bhagwat katha in hindi /संछिप्त राम कथा- भागवत पुराण

संछिप्त राम कथा- भागवत पुराण 

संछिप्त राम कथा- भागवत पुराण / sanchhipta ram katha story in hindi bhagwat purana


सात काण्डों का थोड़ा भावार्थ सुनाया है।। प्रातः कालमें रामायणकी कथा हुई है। रामजीके गुण  अनन्त हैं। रामजीकी लीलाका वर्णन कौन कर सकता है? 

मार्गशीर्ष मास, शुक्ल पक्ष ,पंचमी तिथि, गुरुवार और गोरज मुहूर्तमें श्रीसीतारामजीका लग्न हुआ है। लक्ष्मणजीका, भरतजीका, शत्रुघ्नजीका वहीं लग्न हुआ है। लग्न करके चारों भाई अयोध्याधाममें आये हैं। सभीको आनन्द हुआ है।

एक-दो बार दशरथ महाराज ऐसा बोले कि मेरे-जैसा संसारमें कोई सुखी नहीं है, मैं अति सुखी हूँ। राम-लक्ष्मण-जैसे चार पुत्र हैं, सीता-जैसी पुत्रवधू है, अयोध्याका राज्य हाथमें है। 

दशरथ अति सुखी हुए हैं। अति सुख मिले, यह अच्छा नहीं है। 

जीवनमें थोड़ा दुःख होना ही चाहिये। 

अति सुखमें बुद्धि बिगड़ती है। अति सुखमें जीव गाफिल हो जाता है। दुःखमें जीव थोड़ा सावधान रहता है। अति सुख मिले तो कालको भी सहन नहीं होता है। 

कोई बहुत सुखी हो तो मानवको सहन होता नहीं है। फिर क्या आश्चर्य है कि कालको भी सुख सहन नहीं होता। महाराज दशरथ अति सुखी हुए। दशरथ महाराजके सुखको कालकी दृष्टि लगी है।

अयोध्याकाण्डमें महाराज दशरथ अति दुखी हुए हैं। 

संसारका ऐसा नियम है, सुखके बाद दुःख आता है। अति सुख मिले, यह अच्छा नहीं है। जीवनमें थोड़ा दुःख होना ही चाहिये। दुःखसे हृदय दीन बनता है। दुःखसे मानव सावधान रहता है।

 दुःखसे ही मानव भक्ति करता है। जीवनमें सुख-दुःख, मानअपमान, लाभ-हानि कैसा भी प्रसंग आये, प्रभुकी पूजा कभी छोड़ना नहीं। 

जो बहुत कथा प्रेमसे भगवान की पूजा करता है, उसकी बुद्धि कभी बिगड़ती नहीं है। जीवनमें कैसा भी दुःखका प्रसंग आये, भगवान्की पूजा छोड़ना नहीं, सत्कर्म छोड़ना नहीं, सत्संग छोड़ना नहीं।

कैकेयीकी यही भूल हो गयी, मन्थराका कुसंग किया। कैकेयीने मन्थरामें विश्वास रखा। वसिष्ठ-जैसे बड़े-बड़े ज्ञानी ऋषि कैकेयीको समझाते हैं। कैकेयी किसीकी बात मानती ही नहीं। 

शास्त्रोंमें ऐसा लिखा है कि स्त्री-हृदय अति कोमल होता है। स्त्री-हृदय अति कोमल तो है, किंतु स्त्रीको कुसंग हो जाय, तो स्त्रीका हृदय वज्रसे भी कठिन हो जाता है। कैकेयीने सभीको रुलाया है। 

कैकेयीका हृदय वज्रसे भी कठोर हो गया है। कैकेयी किसीकी बात मानती ही नहीं है। दशरथ महाराज बड़े ज्ञानी हैं, महान् बुद्धिमान् हैं। दशरथ महाराज कैकेयीको नहीं समझा सके। 

उसका हृदय मन्थराने ऐसा कठोर बना दिया है, कैकेयी किसीकी बात मानती नहीं है। __राम-लक्ष्मण-जानकी वनमें जाते हैं। अयोध्याका वैभव छोड़ करके श्रीराम वनमें आये हैं, भीलों-कोलोंका उद्धार करनेके लिये आये हैं।

 राम पतित-पावन हैं। 

जो कुछ पढ़ालिखा नहीं है, जो सदाचारको जानता नहीं है, जो ज्ञान-भक्तिका स्वरूप समझता नहीं है, ऐसे साधारण लोगोंका कल्याण करनेके लिये राम खले पैर वनमें घूमते हैं। 

अयोध्याका वैभव छोड़ दिया है। अनेक जीवोंका कल्याण करनेके लिये राम वनमें आये हैं। राम पतितपावन हैं। चित्रकूटमें श्रीराम-लक्ष्मण-जानकी विराजमान हैं।

दशरथ महाराजको श्रीरामजीका वियोग सहन हआ नहीं। राम-वियोगमें प्राणोंका त्याग। किया। भरतजी आये, श्राद्धादिक विधि हुई।

भरतजीने कहा इस गादीमें बैठनेके लिये मैं लायक नहीं हूँ। कैकेयीका पुत्र कैकेयीसे अति अधम है। मैं पापी हूँ। मेरा जन्म श्रीसीतारामजीको दुःख देनेके लिये हुआ है। मेरे-जैसा अधम जगत्में कोई नहीं है। मेरे लिये राम खुले पैर वनमें चलते हैं, सीताजी कंद-मूल-फल खाती हैं। 

मेरे-जैसा अधम कौन है? राजा पुण्यशाली हो तो प्रजा सुखी होती है। मेरे-जैसे पापीको इस गादीमें आप बैठाओगे तो अयोध्याकी प्रजा बहुत दुखी हो जायगी। इस गद्दीपर तो श्रीसीतारामजी विराजमान हैं। 

मैं अपराधी हूँ, अति पापी हूँ। मेरे राम अति उदार हैं। मुझे विश्वास है, मेरे अपराधको प्रभु क्षमा करेंगे।

भरत राम प्रेमकी मूर्ति हैं। चित्रकूटमें राम-भरतका मधुर मिलन हुआ है। भरतजीको आज्ञा हुई-चरण-पादुका लेकर भरतजी अयोध्याजीमें गये हैं। अनेक ऋषियोंको कृतार्थ करते हुए राम-लक्ष्मण-जानकी गोदावरी-गंगाके किनारे पंचवटीमें आये हैं। 

सीताजीको रावण लंकामें ले गया ही नहीं है। सीताजीको रावण स्पर्श करनेके लिये जाय तो जल करके भस्म हो जाय। 

सीताजीको कोई स्पर्श नहीं कर सकता, भगवान्की आदिशक्ति हैं। 

सीताजीकी छायाको रावण ले गया है। सीताजीके तीन स्वरूप हैं। अति शुद्ध सत्त्वमय स्वरूप रामजीके साथमें ही रहता है। सीतारामका कभी वियोग नहीं होता है। सीताजीका राजसी स्वरूप अग्निमें है। तामसी छायास्वरूपको रावण ले गया है।

श्रीराम-लक्ष्मण सीताजीको खोजने के लिये निकले हैं। शबरीमाँका उद्धार किया है। सग्रीवके साथ रामने मैत्री की है। समुद्रको लाँघ करके श्रीहनुमान्जी महाराज लंकामें आये हैं। माताजीका दर्शन किया है। माताजीको वन्दन करके सन्देश कहा है। 

माताजीको हनुमान्जीनेकहा-माँ, रामजीका दर्शन करके मैं वहाँसे निकला, यहाँ आया, तबतक मैंने पानी भी नहीं पिया। माँ, मुझे भूख लगी है। 

श्रीसीतामाने कहा- तुम्हें भूख लगी है, मैं तुम्हें क्या दू ? 

हनुमान्जीने कहा-मइया! यहाँ फल बहुत दिखते हैं, मुझे आज्ञा दो तो फलाहार करूं? 

सीताजीने कहा-यहाँ तो राक्षस-राक्षसी रक्षण करते हैं। हनुमान्जीने कहा-माँ! मेरी चिन्ता करना नहीं, मेरे रामजीने मुझे ऐसी शक्ति दी है। माँ! आपके आशीर्वादसे में सबको मारूंगा, मेरी आप चिन्ता करना नहीं। _

माताजीने विचार किया-मेरा हनुमान अकेला है, राक्षस बहुत हैं। हनुमान्जीको कहा-बेटा! फल तोड़ना नहीं, जो फल नीचे पड़े हों, उसीको खाना। श्रीहनुमान्जीने विचार किया, मेरी माँने मुझे फल तोड़नेके लिये मना किया है, पेड़ उखाड़नेके लिये नहीं। 

मैं पेड़को उखाड़ता हूँ। एक-एक वृक्षको हिलाते हैं, मूलसे उखाड़ डालते हैं। अशोक-वाटिकाका विध्वंस किया है। राक्षसोंका नाश किया है। लंकाको जलाया है।

 हनुमान्जीकी लीला कौन वर्णन कर सकता है?

हनुमान आये हैं। राम-नामसे पत्थर तैरते हैं। सेतु-बन्धन किया है। वानरोंके साथ लंकामें प्रवेश किया है। राक्षस रामजीके साथ क्या युद्ध कर सकते हैं? राम तो राक्षसोंके साथ खेलते हैं। 

कभी-कभी पिता अपने पुत्रके साथ खेलता है, तब ऐसा नाटक करता है कि पुत्रकी जीत हो गयी, मेरी हार हो गयी। रामजी ऐसी लीला करते हैं, राक्षसोंकी जीत हो गयी, रामजीकी हार हो गयी। लीलामें रावणको मारा है। राक्षसोंका विनाश किया है।

राम-लक्ष्मण-जानकी श्रीअयोध्याजी आये हैं। श्रीसीतारामजीको स्वर्ण-सिंहासन में बिठाया है। राम-राज्याभिषेक हुआ है। राम- को गज्यमें प्रजा बहुत सुखी है। राम-राज्यमें कोई मुर्ख नहीं है, सभी ज्ञानी हैं।

राम-राज्यमें घर घरमें सत्संग होता है। 

राम-राज्यमें सभी लोग एकादशीका व्रत करते हैं। राम-राज्यमें कोई वंश विधवा नहीं है। 

राम-राज्यमें सभी ब्राह्मण राज अग्निहोत्री हैं, वेदाध्ययन करते हैं। राम-राज्यमें हुकारागृहमें रहनेवाला कोई चोर नहीं है । राम-राज्यमें सभी सुखी हैं, कोई भी दुखी नहीं है। जितने वकील थे, उनका धन्धा तो राम-राज्यमें जरा भी चलता नहीं था, किसीके घरमें झगड़ा होता ही नहीं था। 

किसीको अन्यायका धन लेनेकी इच्छा नहीं होती थी।  राम-राज्यमें कोई रोगी नहीं है। राम-राज्यमें कोई दुखी नहीं है, सभी सुखी हैं।

रामचन्द्रजीके यहाँ दो बालक हुए हैं- लव और कुश। कुशका वंश बढ़ा है। कुशके वंशमें निषध नामका राजा हुआ है। इस वंशमें हिरण्यनाभ राजा हुआ। इस वंशमें सुदर्शन राजा हुआ। इस वंशमें मरु राजा हुआ है। सूर्यवंशमें अन्तिम राजा - सुमित्र हुआ है- 

इक्ष्वाकूणामयं वंशः सुमित्रान्तोभविष्यति।

 (श्रीमद्भा०९।१२।१६) 

सुमित्र राजा- तक ही इक्ष्वाकुवंश रहेगा, फिर इस वंशका - नाश हो जायगा। . सूर्यवंश-प्रकरण परिपूर्ण किया है। 

( श्री राम देशिक प्रशिक्षण केंद्र )

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