स्नानांगतर्पण- स्नान के बाद इस बिधि से करे तर्पण (घर में न करें) tarpan ki sahi vidhi mantra sahit

स्नानांगतर्पण (घर में न करें)

स्नानांगतर्पण- स्नान के बाद इस बिधि से करे तर्पण (घर में न करें) tarpan ki sahi vidhi mantra sahit


स्नान के बाद इस बिधि से करे तर्पण 
पूर्वाभिमुख होकर सव्य हो (जनेऊ को बाँए कन्धे पर रख कर) देवतीर्थ (अंगुलियों के अग्रभाग) से नीचे लिखे मंत्रों द्वारा एक एक अंजलि जल, जल में ही दें।

ॐ बृह्मादयो देवास्तृप्यन्ताम् १। ॐ भूर्देवास्तृप्यन्ताम् १। 
ॐ भुवदैवास्तृप्यन्ताम् १ । ॐ स्वर्देवास्तृप्यन्ताम् । ॐ भूर्भुवः स्वर्देवास्तृप्यन्ताम् १। 
ॐ गौतमादयः ऋषयस्तृप्यन्ताम् १।

इसके बाद जनेऊ को कण्ठी की तरह धारण कर उत्तराभिमुख हो प्रजापति तीर्थ से दो अंजलि जल देवें । 
ॐ सनकादयो मनुष्यास्तृप्यन्ताम् २।
दक्षिणाभिमुक होकर (अपसव्य हो) पितृतीर्थ से नीचे लिखे मंत्रों से तीनतीन अंजलि जल देवें ।
ॐ कव्यवाडादयः पितरस्तृप्यन्ताम् ३ । ॐ चतुर्दश यमास्तृप्यन्ताम् ३। ॐ भूः पितरस्तृप्यन्ताम् । ॐ भुवः पितरस्तृप्यन्ताम् ३। ॐ स्वः पितरस्तृप्पत्ताम् । ॐ भूर्भुवः स्वः पितरस्तृप्यन्ताम् ३।
ॐ अमुकगोत्रा अस्मत्पितृ-पितामह-प्रपितामहास्तृप्यन्ताम् । ॐ अमुक गोत्रा अस्मन्मातृपितामही-प्रपितामहस्तृप्यन्ताम् । ॐ अमुकगोत्रा अस्मन्माता महप्रमातामहवृद्ध प्रमातामहः सपत्नीकास्तृप्यन्ताम् । ॐ ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तं अगघृष्टताम् । 

नीचे लिखे मंत्र से जल के बाहर एक अञ्जलि जल देवें ।
अग्निदग्धाश्च ये जीवा येप्यदग्धाः कुले मम ।
भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु तृप्ता यान्तु परां गतिम् ।। 

जल से बाहर अधोलिखित मंत्र पढ़ते हुए अपनी शिखा दाहिनी ओर निचौड़ देवें ।
लतागुल्मेपु वृक्षेपु पितरो ये व्यवस्थिताः ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया दत्तैः शिखोदकैः ।। 

tarpan ki sahi vidhi mantra sahit

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