Chatushloki Bhagwat
ब्रह्मा जी इस जगत की सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था मेरे अलावा और कुछ नहीं था इस जगत के रूप में मैं ही विद्यमान हूं और जब यह जगत नहीं रहेगा तब केवल मैं ही रहूंगा |
वास्तविक वस्तु उस परमात्मा को छोड़कर जिस की प्रतीति होती है उस आत्म तत्व परमात्मा की प्रतीति नहीं होती उसे माया कहते हैं| जैसे आकाश में चंद्रमा एक है परंतु आंख के सामने उंगली रखने पर वह दो प्रतीत होते हैं और आकाश में तारों के मध्य राहु नामक ग्रह विद्यमान हैं परंतु वह दिखाई नहीं देता इसी प्रकार चराचर जगत में परमात्मा विद्यमान हैं परंतु उसका ज्ञान नहीं होता |
जैसे प्राणियों के छोटे बड़े शरीर में आकाश आदि पंचमहाभूत प्रविष्ट होते हैं और पहले से ही विद्यमान रहने के कारण प्रविष्ट नहीं भी होते ऐसे ही ब्रह्मा जी प्राणियों के शरीर में आत्म रूप से मैं सदा प्रविष्ट हूं और मेरे अतिरिक्त कोई दूसरी वस्तु है ही नहीं इसलिए मैं उस में प्रविष्ट नहीं हूं|
यह ब्रह्म नहीं यह ब्रह्म नहीं इस प्रकार निषेध की पद्धति से अथवा यह ब्रह्म है यह ब्रह्म है इस प्रकार ब्रह्म है इस प्रकार अनवय की पद्धति से यही सिद्ध होता है की सर्वदा सब जगह है वह ब्रह्म विद्यमान है |
जो परमात्म तत्व को जानना चाहते हैं उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है |
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