धर्मः स्वनिष्ठितः पुसां /dharmah svanishthitah pusam
धर्मः स्वनिष्ठितः पुसां विष्वक्सेन कथासु यः |
नोत्पादयेद्यदि रतिं श्रम एव हि केवलम् ||
मनुष्य भली प्रकार से स्वधर्म का पालन करता है परंतु उसको धर्म के पालन करने से भगवान और भगवान की कथाओं में प्रेम उत्पन्न नहीं होता वह तो केवल श्रम ही है |
धर्मः स्वनिष्ठितः पुसां /dharmah svanishthitah pusam
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