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Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi /महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव?

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Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi /महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव?

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi /महामृत्युंजय मंत्र  का प्रभाव?

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi

 महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव?

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi


मंत्र साधना का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। मंत्र साधना की सफलता में विश्वास एक सीमा तक ही उपयोगी होता है।


कुल आचार्यों के अनुसार वह साधना और प्रवाह बनाए रखने के लिए आवश्यक है, हो तो ठीक और ना हो तो ठीक, पर मंत्र अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं।


वे कौन से तत्व हैं, जो मंत्र जप को सफलता तक पहुंचाते हैं। उनमें मुख्य हैं-शब्द शक्ति, जप या मंत्रों की आवर्तिता और साधक की चर्या। शब्दों और अक्षरों का गुंफन ही मंत्र को शक्तिशाली बनाता है।

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi


धर्मशास्त्रों में मंत्रशक्ति से रोग निवारण की जितनी साधनाएं उपलब्ध हैं, उनमें 'मृत्युंजय साधना' का सर्वोच्च स्थान है।


रोग और शान्ति तथा मृत्युंजय पर विजय प्राप्त करने के लिए परीक्षित महामत्यूजय मंत्र जप से श्रेष्ठ और कोई मंत्र नहीं है।


अनन्त साधकों ने अपनी अनुभूतियों से इस सत्य को जाना है। श्रद्धापूर्वक इसकी की गई साधना सदैव फलदायक होती है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कोई भी व्यक्ति इसे अपनाकर अनुभव कर सकता है।


शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि जिसके घर में इस मंत्र की कम-से-कम एक माला नित्य जप होता है, तो वहां किसी भी प्रकार का रोग, अकाल मृत्यु का भय आदि व्याप्त नहीं होता।


उस घर में किसी प्रकार के अभाव नहीं रहते। मूल मंत्र का शास्त्र सम्मत रूप इस प्रकार है-

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi


त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।


भावार्थ-'हम तीन नेत्रों वाले शिव की उपासना करते हैं। यहां वैदिक परिभाषा में गायत्री छन्द , जगती छन्द अर्थात् तीन शक्तियों के स्वामी। पौराणिक मत से अग्नि, चन्द्र और सूर्य के तीन नेत्र हैं। वह त्र्यम्बक कहलाता है।


ज्योतिषीय मत के भूत, भविष्य और वर्तमान ये तीनों काल, स्वरूप त्र्यम्बक के तीन नेत्र हैं।


उस सर्वशक्तिमान ईश्वर की मैं सुगन्धित युक्त और पुष्टि प्रदान करने उर्वास्क अर्थात् खीरा या खरबूजा की तरह मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाऊं तथा अमृतमय परमात्मा से उसका सम्बन्ध कदापि विच्छिन्न हो।'


स्नानादि से निवृत्त होकर किसी शांत और पवित्र स्थान पर शरीर शुद्धि, आचमन, प्राणायाम, गणेश स्मरण, गुरु वन्दन के पश्चात् तिथि, वार नक्षत्र आदि का उच्चारण करते हुए मंत्र जाप करें।

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