ना भारती मेङ्ग मृषोपलक्ष्यते /na bhrati meng mrishopa
ना भारती मेङ्ग मृषोपलक्ष्यते
न वै क्वचिन्मे मनसो मृषा गतिः |
न मे हृषीकाणि पतन्त्यसत्पथे
यन्मे हृदौत्कण्ठवता धृतो हरिः ||
( 2,6,33 )
नारद इन्ही भगवान नारायण के ध्यान में मग्न रहता हूं जिसके कारण मेरी वाणी कभी असत्य भाषण नहीं करती, मेरा मन कभी असत्य संकल्प नहीं करता और मेरी इंद्रियां कुमार्ग में नहीं जाती |
ना भारती मेङ्ग मृषोपलक्ष्यते /na bhrati meng mrishopa
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