F पातालमेतस्य हि पादमूलं /Pātālamētasya hi pādmūlaṁ - bhagwat kathanak
पातालमेतस्य हि पादमूलं /Pātālamētasya hi pādmūlaṁ

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पातालमेतस्य हि पादमूलं /Pātālamētasya hi pādmūlaṁ

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पातालमेतस्य हि पादमूलं
         पठन्ति पार्ष्णिप्रपदे रसातलम् |
महातलं विश्वसृजोथ गुल्फौ 
          तलातलं वै पुरुषस्य जघें ||

पाताल विराट भगवान के तलवे हैं रसातल पंजे हैं महातल एड़ी के ऊपर की गांठ है तलातल पिंडलियां है सुतल घुटने हैं वितल और अतल दोनों जघांयें हैं | नाभि तक नाभि से नीचे का स्थान नाभि भुवर्लोक छातीस्वर्ग लोक है गला महर लोक है मुख जनलोक है |

ललाट तपो लोक है और मस्तक सत्यलोक है| ब्राह्मण विराट भगवान के मुख हैं छत्री भुजाएं हैं वैस्य जघां है़ और शूद्र भगवान के चरण है इस प्रकार संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान का ही स्वरुप है इसलिए सर्वत्र भगवान का ही दर्शन करें संसारिक पदार्थों के लिए अधिक परिश्रम ना करें क्योंकि भाग वसात उनकी प्राप्ति स्वतः ही हो जाएगी |

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