F ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत /ritertham yat pratiyet - bhagwat kathanak
ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत /ritertham yat pratiyet

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ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत /ritertham yat pratiyet

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 ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत /ritertham yat pratiyet


ऋतेर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि |
तद्विद्यादात्मनो  मायां यथा भासो यथा तमः ||

वास्तविक वस्तु उस परमात्मा को छोड़कर जिस की प्रतीति होती है उस आत्म तत्व परमात्मा की प्रतीति नहीं होती उसे माया कहते हैं| जैसे आकाश में चंद्रमा एक है परंतु आंख के सामने उंगली रखने पर वह दो प्रतीत होते हैं और आकाश में तारों के मध्य राहु नामक ग्रह विद्यमान हैं परंतु वह दिखाई नहीं देता इसी प्रकार चराचर जगत में परमात्मा विद्यमान हैं परंतु उसका ज्ञान नहीं होता |


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