F भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok - bhagwat kathanak
भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok

bhagwat katha sikhe

भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok

भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok

 भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok

भागवत कथा, पंचम स्कंध

भागवत कथा के श्लोक /bhagwat katha ke shlok



प्रियव्रतो भागवत आत्मारामः कथं मुने |
गृहेरमत   यन्मूलः   कर्मबन्ध:  पराभवः ||
( 5/1/1 )
गुरुदेव   महाराज प्रियव्रत भगवान के परम भक्त और आत्माराम थे | फिर उन्होंने किस कारण से कर्म बंधन में डालने वाले गृहस्थ आश्रम को स्वीकार किया और संतान आदि को प्राप्त कर ग्रहस्थ में रहते रहे |उन्होंने किस प्रकार आत्म ज्ञान को प्राप्त किया यह सब बताने की कृपा कीजिए | 


बाढमुक्तं भगवत उत्तमश्लोकस्य श्रीमच्चरणारविन्दमकरन्दरस आवेशितचेतसो भागवतपरमहंसदयितकथां किञ्चिदन्तरायविहतां स्वां शिवतमां पदवीं न प्रायेण हिन्वन्ति ||
( 5/1/5 )
परीक्षित तुम्हारा कथन सत्य है | गृहस्थ आश्रम बंधन में डालने वाला है परंतु जिसका चित्त एक बार भगवान के चरणों में लग जाता है | जिन्होंने उनके चरण कमल मकरंद रस का एक बार भी पान कर लिया | वे थोड़ी बहुत शारीरिक विघ्न बाधा उत्पन्न होने पर भी भगवान के कल्याणमय मार्ग को नहीं छोड़ते |



भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि स्याद् 
    यतः स आस्ते सहषट्सपत्नः |
जितेन्द्रियस्यात्मरतेर्बुधस्य
   गृहाश्रमः किं नु करोत्यवद्यम् ||
( 5/1/17 )
ब्रह्मा जी ने कहा-----   बेटा प्रियव्रत जो असावधान हैं | जिनकी इंद्रिय अपने वश में नहीं रहती है | वे यदि वन में भी रहते हैं तो उनका पतन हो जाता है और उन्हें पतन का सदा डर रहता है | परंतु जिन्होंने अपने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है ऐसे आत्म ज्ञानी पुरुष का गृहस्थ आश्रम क्या बिगाड़ सकता है |


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महत्सेवां    द्वारमाहुर्विमुक्ते-
   स्तमोद्वारं योषितां सङ्गिसङ्गम् |
महान्तस्ते समचित्ताः प्रशान्ता
   विमन्यवः सुहृदः  साधवो  ये ||
( 5/5/2 )
जब तक यह शरीर है तब तक महान पुरुष महात्माओं का संग करना चाहिए | महात्माओं के संग से मुक्ति की प्राप्ति होती है और विषयी लोगों के संग से नर्क की प्राप्ति होती है |महान पुरुष वे ही हैं , जिनका चित्त समता से युक्त है जो परम शांत हैं , क्रोधादि से रहित हैं और सब के परम हितैषी हैं | 



न ब्राह्मणैस्तुलये भूतमन्यत्
       पश्यामि विप्रा: किमतः परं तु |
यस्मिन्नृभिः प्रहुतं श्रद्धयाहमश्नामि
     कामं     न      तथाग्निहोत्रे ||
( 5/5,23 )
इस जगत में मैं ब्राह्मणों से अधिक किसी को भी श्रेष्ठ नहीं मानता | अग्नि में दी हुई आहुति से मैं उतना प्रसन्न नहीं होता जितना श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराने से होता हूं |



न कुर्यात्कर्हिचित्सख्यं मनसि ह्यनवस्थिते |
यद्विश्रम्भाच्चिराच्चीर्णं चस्कन्द तप ऐश्वरम् ||
( 5/6/3 )
परीक्षित तुम्हारा कहना सत्य है परंतु चालाक बहेलिया भी अपने पकड़े हुए मृग पर विश्वास नहीं करता ऐसे ही कभी भी अपने चंचल चित्त पर विश्वास नहीं करना चाहिए | इसी चित्त पर विश्वास करने के कारण मोहिनी के रूप में फंसकर भगवान शंकर का चिरकाल का तप खंडित हो गया था |

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त्वं जीवन्मृतो मां कदर्थीकृत्य भर्तृशासन मति चरसि |
प्रमत्तस्य च ते करोमि चिकित्सां दण्ड पाणिरिव ||
( 5.10.7 )
तुम जीते जी मुर्दे के समान हो जो मेरी आज्ञा की अवहेलना कर रहे हो मैं यमराज के समान तुम्हारी चिकित्सा कर दूंगा ,,,



त्वयोदितं व्यक्तमपि प्रलब्धं
        भर्तुः समे स्याद्यदि वीर भारः |
गन्तुर्यदि स्यादधिगम्यमध्वा
        पीवेत राशौ न विदां प्रवादः ||
( 5.10.9 )
 राजन तुम्हारा कहना सत्य है परंतु यदि भार नाम की चीज है तो वह ढोने वाले के लिए है, रास्ता है तो चलने वाले के लिए है ,मोटा होना पतला होना उत्पन्न होना मरना यह सब शरीर के धर्म है, आत्मा का  इनसे कोई संबंध नहीं होता |



नाहं विशंके सुरराजवज्रा-
      न्न त्र्यक्षशूलान्न यमस्य दण्डात |
नाग्न्यर्कसोमानिलवित्तपास्त्रा-
     च्छङ्के भृशं ब्रह्मकुलावमानात ||
( 5.10.17 )
मैं इंद्र के वज्र शिव के त्रिशूल यमराज के दंड और अग्नि सोम आदि देवताओं के अस्त्र शस्त्रों से नहीं डरता परंतु ब्राम्हण कुल के अपमान से मुझे बहुत डर लगता है,,,,



न यत्र वैकुण्ठकथा सुधा पगा
        न साधवो भागवतास्तदाश्रयः |
न यत्र यज्ञेशमखा महोत्सवा:
        सुरेशलोकोपिन वै स सेव्यताम् ||
( 5.19.24 )
जहां भगवान श्री हरि की अमृतमयी कथा सरिता प्रवाहित नहीं होती जहां भगवान के भक्त साधु महात्मा निवास नहीं करते जहां यज्ञ आदि महोत्सव नहीं होते यदि देवलोक भी हो तो वहां नहीं निवास करना चाहिए , यदि स्वर्ग का सुख भोगने के पश्चात हमारे कुछ शेष पुण्य बचे हो तो हम भगवान से प्रार्थना करते हैं हमारा जन्म भारत भूमि में हो , जिससे हम भगवान का गुणगान कर सकें उन्हें प्राप्त कर सकें |

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