F भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya - bhagwat kathanak
भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya

bhagwat katha sikhe

भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya

भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya

 भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya


भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि स्याद् 
    यतः स आस्ते सहषट्सपत्नः |
जितेन्द्रियस्यात्मरतेर्बुधस्य
   गृहाश्रमः किं नु करोत्यवद्यम् ||
( 5/1/17 )
ब्रह्मा जी ने कहा-----   बेटा प्रियव्रत जो असावधान हैं | जिनकी इंद्रिय अपने वश में नहीं रहती है | वे यदि वन में भी रहते हैं तो उनका पतन हो जाता है और उन्हें पतन का सदा डर रहता है | परंतु जिन्होंने अपने इंद्रियों को अपने वश में कर लिया है ऐसे आत्म ज्ञानी पुरुष का गृहस्थ आश्रम क्या बिगाड़ सकता है |

 भयं प्रमत्तस्य वनेष्वपि /Bhayaṁ pramattasya


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