F दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar - bhagwat kathanak
दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar

bhagwat katha sikhe

दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar

दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar

 दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar

दास्यस्म्यहं सुन्दर कंससम्मता
त्रिवक्रनामा ह्यनुलेप कर्मणि |
मद्भावितं भोजपतेरतिप्रियं
विना युवां कोन्यतमस्तदर्हति |

हे परम सुंदर मैं कंस की दासी हूं , तीन जगह से टेडी़ हूं इसलिए लोग मुझे (त्रिवक्रा) कुब्जा कहते हैं मैं कंस को चंदन लगाने का काम करती हूं मेरा लगाया हुआ चंदन उन्हें बहुत भाता है | परंतु आप से बढ़कर इसका उत्तम अधिकारी और कौन हो सकता है ,,,,

 दास्यस्म्यहं सुन्दर /dasyasmyaham sundar


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