को नु लोके मनुष्येन्द्र /Kō nu lōkē manuṣyēndra
को नु लोके मनुष्येन्द्र पितुरात्मकृतः पुमान् |प्रतिकर्तुं क्षमो यस्य प्रसादाद् विन्दते परम् ||
पिता जी, पिता की ही कृपा से पुत्र के शरीर की प्राप्ति होती है, ऐसी अवस्था में पिता के उपकार का बदला कौन चुका सकता है | उत्तम पुत्र तो वह है जो पिता के मन की बात समझ कर उनके बिना कहे ही कर दे | जो कहने पर करें वह मध्यम पुत्र है और जो कहने पर भी ना करें वह अधम पुत्र है |को नु लोके मनुष्येन्द्र /Kō nu lōkē manuṣyēndra
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