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Most Famous Shlok of Bhagwat

bhagwat katha sikhe

Most Famous Shlok of Bhagwat

Most Famous Shlok of Bhagwat

 Most Famous Shlok of Bhagwat


भर्तुः शुश्रूषणं स्त्रीणां परो धर्मो ह्यमायया |
तद्वन्धूनां च कल्याणः प्रजानांचानुपोषणम् |
भा• 10.29.24
दुःशीलो दुर्भगो वृद्धो जडोरोग्यधनोपि वा |
पतिःस्त्रीभिर्नहातव्योलोकेप्यसुभिरपातकी |
भा• 10.29.25

अपने पति की निष्कपट भाव से सेवा करना उनके बंधु बान्धवो को प्रसन्न रखना और संतान का पालन पोषण करना स्त्रियों का परम धर्म है , अपना पति बुरे स्वभाव का हो , या भाग्यहीन हो वृद्ध हो , मूर्ख हो, रोगी हो अथवा निर्धन ही क्यों ना हो फिर भी उसका त्याग नहीं करना चाहिए|


श्रवणाद् दर्शनाद् ध्यानान्मयि भावोनुकीर्तनात् |
न तथा सन्निकर्षेण प्रतियात ततो गृहान् |

मेरी कथाओं का श्रवण करने से , मेरा दर्शन करने से, मेरे स्वरूप का ध्यान करने से और मेरे नामों का कीर्तन करने से जिस प्रकार मुझ में प्रेम उत्पन्न होता है , उस प्रकार पास में रहने से नहीं होता |


 Most Famous Shlok of Bhagwat

मैवं विभोर्हति भवान गदितुं नृशंसं
     सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् |
भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान्
      देवो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षुन |

प्यारे श्याम सुंदर आप इस प्रकार निष्ठुरता भरे वचन मत कहिए, हम समस्त विषयों का त्याग कर आप की शरण में आए हैं हम आपकी भक्त हैं हमारा त्याग मत करिए |

जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः 
     श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि |
 दयित दृश्यतां दिक्षु तावका
     स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते |

 शरदुदाशये साधुजातसत् 
     सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा |
 सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका 
     वरद निघ्नतो नेह किं वधः |

 विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद् 
     वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् |
 वृषमयात्मजाद् विश्वतो भयाद् 
     ऋषभ ते वयं रक्षिता मुहुः |

 न खलु गोपीकानन्दनो भवान् 
     अखिलदेहिनां अन्तरात्मदृक् |
 विखनसार्थितो विश्वगुप्तये 
     सख उदेयिवान् सात्वतां कुले |

हे प्यारे श्याम सुंदर जबसे आपका जन्म इस व्रज में हुआ इससे इसकी महिमा बैकुंठ से भी अधिक हो गई है तभी तो बैकुंठ की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी अपना निवास स्थान छोड़कर नित्य यहां सेवा में लगी रहती हैं , प्रभु आपको हमें जो सजा देनी है वह दे दीजिए हम आपकी बिन मोल की दासी है।

यदि आपको हमें मारना ही था तो यमुना के विषैले जल और इंद्र की  मूलाधार वर्षा से आपने हमारी रक्षा क्यों कि ? प्रभो आप मात्र यशोदानंदन ही नहीं अपितु समस्त प्राणियों के हृदय में विराजमान अंतर्यामी परमेश्वर हैं , ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर आप विश्व की रक्षा के लिए यदुकुल मे अवतीर्ण हुये आप की कथा अमृत के समान है , अथवा आप की कथा मारने वाली है एक बार भी जो इसे सुन लेता है वह बिच्छूकों के भांति भटकता रहता है |

प्रभु आपके चरण अत्यंत सुकोमल हैं इन्हें हम अपने कठोर वक्षस्थल पर रखने से भी डरती हैं आप इन्हें चरण कमलों से भटकते रहे , आपके चरणो में कंकड़ पत्थर आदि चुभ रहे होंगे जिसकी कल्पना मात्र से हमें चक्कर आ रहा है प्रभु हमारा जीवन आपके लिए है हम आपके हैं श्री कृष्ण के  दर्शन की लालसा से गोपियों ने एक साथ रुदन किया--

 Most Famous Shlok of Bhagwat


धर्मव्यतिक्रमो दृष्ट ईश्वराणां च साहसम् |
तेजीयसां न दोषाय वन्हेः सर्वभुजो यथा |

परीक्षित जो तेजस्वी होते हैं- सामर्थ साली होते हैं , उनमें दोष नहीं होता जैसे अग्नि सब कुछ खा जाती है परंतु किसी भी पदार्थ से लिप्त नहीं होती | भगवान शंकर हलाहल विष पी गए कोई साधारण पुरुष पीता तो जलकर भस्म हो जाता |


विक्रीडितं व्रजवधूरभिरिदं च विष्णोः 
     श्रद्धान्वितोनुश्रृणुयादथ वर्णयेद यः
भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं
      हद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीरः

परीक्षित जो भी इस महारास का वर्णन करता है अथवा इस महारास का श्रवण करता है , उसे भगवान की निष्काम भक्ति की प्राप्ति होती है और उसका रोग जो काम बिकार है वह छूट जाता है|


दास्यस्म्यहं सुन्दर कंससम्मता
त्रिवक्रनामा ह्यनुलेप कर्मणि |
मद्भावितं भोजपतेरतिप्रियं
विना युवां कोन्यतमस्तदर्हति |

हे परम सुंदर मैं कंस की दासी हूं , तीन जगह से टेडी़ हूं इसलिए लोग मुझे (त्रिवक्रा) कुब्जा कहते हैं मैं कंस को चंदन लगाने का काम करती हूं मेरा लगाया हुआ चंदन उन्हें बहुत भाता है | परंतु आप से बढ़कर इसका उत्तम अधिकारी और कौन हो सकता है ,,,,

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मल्लानामशनिर्नृणां नरवरः स्त्रीणांस्मरो मूर्तिमान 
गोपानांस्वजनोसतांक्षितिभुजांशास्तास्वपित्रोशिशुः|
मृत्युर्भोजपतेर्विराडविदुषांतत्वंपरंयोगिनां
वृष्णीनांपरदेवतेतिविदितोरङ्गंगतःसाग्रजः |
मल्लो को वज्र के समान, मनुष्यों को श्रेष्ठ नर के समान, स्त्रियों को वे कामदेव के रूप में ,गोपों को वे सगे संबंधी के रूप में, दुष्ट राजाओं को शासक के रूप में ,माता पिता को पुत्र के रूप में, कंस को मृत्यु के रूप में ,ज्ञानियों को विराट रूप में और योगियों को परम तत्व के रूप में श्री कृष्ण दिखाई दिए | 


न बालो न किशोरस्त्वं बलश्च बलिनां वरः |
लीलयेभो हतो येन सहस्त्रद्विपसत्त्वभृत् |
कृष्ण न तो तुम बालक हो, ना किशोर हो , तुम बलवानो में श्रेष्ठ हो | अभी अभी तुमने खेल ही खेल में एक हजार हाथियों का बल रखने वाले कुवलया पीड़ हाथी को मार दिया,,,,



वृष्णीनां प्रवरो मन्त्री कृष्णस्य दयितः सखा |
शिष्यो वृहष्पतिः साक्षादुद्धवो बुद्धिसत्तमः ||
बृहस्पति के शिष्य परम बुद्धिमान , श्री कृष्ण के सखा उद्धव जी ने देखा तो कहा-- प्रभु आपके दुख का क्या कारण है ? 

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अपि स्मरति नः कृष्णो मातरं सुह्रदः सखीन् |
गोपान् व्रजं चात्मनाथं गावो वृन्दावनं गिरिम् |

क्या श्री कृष्ण कभी मैया यशोदा, ग्वाल बालों, गोपी ,वृंदावन ,गाय और गिरिराज को याद करते हैं ? क्या कभी वृंदावन आएंगे ? तो उनका सांवरा सलोना मुख मंडल हम देख लेंगे ! 


युवां श्लाघ्यतमौ नूनं देहिनामिह मानद |
नारायणे खिलगुरौ यत् कृतामतिरीदृशी |
बाबा आप दोनों अत्यंत प्रशंसनीय हो क्योंकि आपको अखिल जगत के गुरु भगवान नारायण में इस प्रकार की मति है | 


मधुप कितवबन्धो मा स्पृशाङ्घ्रिं सपत्न्याः 
कुचविलुलितमालाकुङ्कुमश्मश्रुभिर्नः |
वहतु मधुपतिस्तन्मानिनीनां प्रसादं
यदुसदसि विडम्ब्यं यस्य दूतस्त्वमीदृक् |
हे मधुप तू कपटी का सखा है, जैसा तेरा स्वामी वैसे तू भी कपटी है इसलिए मेरे पैरों को मत छू क्योंकि तेरी  मूंछों में मथुरा की मनिनी स्त्रियों के वक्षस्थल का केसर लगा है | जैसे तेरे स्वामी का मन एक जगह नहीं लगता उसी प्रकार तू भी एक फूल से दूसरे फूल मे मंडराता रहता है |

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मृगयुरिव कपीन्द्रं विव्यधे लुब्धधर्मा
स्त्रियमकृत विरूपां स्त्रीजितः कामयानाम् |
बलिमपि बलिमत्त्वावेष्टयद् ध्वाङ्क्षवद्य
स्तदलमसितसख्यैर्दुस्त्यजस्तत्कथार्थः |
जब तेरे स्वामी राम वन गए थे जब उन्होंने निरपराध बाली को व्याघ्र के समान छिपकर बड़े निर्दयता से मारा था , बेचारी सुर्पणखा उनके पास काम बस आई थी परंतु उन्होंने उसके भी नाक कान काट कर उसे भी कुरुप बना दिया, राजा बलि उसने तो अपना सर्वस्व दान कर दिया भगवान को, परंतु उसे भी वरुण पास में बांध पाताल में डाल दिया |



अहोयूयंस्मपूर्णार्था भवत्योलोकपूजिताः |
वासुदेवे भगवति यासामित्यर्पितं मनः |
गोपियों तुम सभी कृतकृत्य हो संपूर्ण लोकों के लिए पूजनीय हो तुम्हारा मन श्री कृष्ण के चरणों में इस प्रकार लगा है | 


श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर श्रृण्वतां ते निर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोङ्गतापम् |रूपं दृशां दृशिमतामखिलार्थलाभं त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे
हे त्रिभुवन सुंदर प्रभु जब से मैंने आपके गुणों का वर्णन सुना है ,मेरा मन लज्जा शर्म सब कुछ छोड़कर आप में ही प्रविष्ट हो गया है | इस संसार में ऐसी कौन सी कुलीन स्त्री है जो आपको पति के रूप में प्राप्त ना करना चाहेगी |

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वामबाहुकृतवामकपोलोवल्गितभ्रुरधरार्पितवेणुम्|
कोमलाङ्गुलिभिराश्रितमार्गंगोप्यईरयतियत्रमुकुन्दः|
व्योमयानवविताः सह सिद्धै र्विस्मितास्तदुपधार्य सलज्जाः |
काममार्गण समर्पित चित्ताःकश्मलं ययुरपस्मृतनीव्यः |

अरी सखी जब नट नागर प्यारे सुन्दर अपने मुख मंडल को बाएं बाह कि ओर लटकाकर भौहो को नचाते हुए अधरों पर बांसुरी लगा अपने सुकोमल अंगुलियों को उनके छिद्रो मे फिराते हुए मधुर तान छेड़ते हैं, उस समय आकाश मे विमानों में चढ़ी हुई सिद्धो की पत्नियां जब उस तान को सुनती हैं तो वो उस तान पर  इतना मोहित हो जाती है कि शरीर की सुधबुध ही भूल जाती है , उनका उत्तरीय वस्त्र उतरकर पृथ्वी में गिर जाता है जब उन्हें चेतना आती है तो वो लज्जित हो जाती है |


अहो विधातास्तव न क्वचिद् दया
संयोज्य मैत्र्या प्रणयेन देहिनः |
तांश्चाकृतार्थान वियुनङ्क्ष्यपार्थकं
विक्रीडितं तेर्भकचेष्टितं यथा |
अहो विधाता तुम में थोड़ी भी दया नहीं तुम सौहार्द में और प्रेम में प्राणियों को आपस में जोड़ते हो और उनकी अभी इच्छाएं अभिलाषा पूर्ण भी नहीं हुई उन्हें अलग कर देते हो | तुम्हारा यह खेल बच्चों के खेल के समान व्यर्थ है,,,



 यावदालक्ष्यतेकेतुर्यावदरेणु रथस्य च |
अनुप्रस्थापितात्मानो लेख्यानीवोपलक्षिताः |
जब तक रथ कि ध्वजा दिखाई देती रही गोपियां उस ध्वजा को देखी, जब ध्वजा दिखना बंद हुआ तो रथ से उड़ रही धूल को देखती रही  ,जब वह भी दिखना बंद हुआ तो उनकी आशा टूट गई अब श्री कृष्ण लौटकर नहीं आने वाले | 



नतोस्म्यहं त्वाखिलहेतुहेतुं नारायणं पूरुषमाद्यमव्ययम् |
यन्नाभिजातादरविन्दकोशाद ब्रह्माविरासीद् यत एष लोकः |

हे प्रभु आप समस्त कारणों के भी कारण है अविनाशी पुरुषोत्तम नारायण हैं , आपके नाभि कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूं,,,,,

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