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Bhagwat Puran Dasham Skandh Shlok

bhagwat katha sikhe

Bhagwat Puran Dasham Skandh Shlok

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 Bhagwat Puran Dasham Skandh Shlok


द्रोणो  वसूनां   प्रवरो   धरया  सह  भार्यया  । 
करिष्यमाण  आदेशान्   ब्रह्मणस्तमुवाच ह  ।। १०/८/४८

परीक्षित नंदबाबा पूर्व जन्म में द्रोण नाम के वसु थे और यशोदा जी धरा थी | ब्रह्मा जी के आदेश देने पर जब इन्होंने भगवान श्रीहरि की आराधना की भगवान श्री हरि  प्रसन्न  हो गए भगवान से इन्होंने वरदान मांगा हमें आप की बाल लीलाओं का आनंद प्राप्त हो, भगवान श्री हरि ने कहा ऐसा ही होगा | 


एकदा गृहदासीषु यशोदा नन्दगेहिनी  । 
कर्मान्तर नियुक्तासु निर्ममन्थ स्वयं दधि ।। १०/९/१
एक दिन मैया यशोदा घर की अन्य  दासियो को दूसरे कामों में लगा स्वयं  दही मंथन करने लगी , उसी समय कन्हैया आए मैया की गोद में चढ़ गए मैया ने दधि मंथन बंद कर दिया कन्हैया को दूध पिलाने लगी | 


वाणी  गुणानुकथने श्रवणौ कथायां हस्तौ च कर्मसु मनस्तव  पादयोर्न: ।
स्मृत्यां  शिरस्तव निवास जगत्प्रणामे दृष्टि: सतां दर्शनेऽस्तु भवत्तनूनाम् ।। १०/१०/३८
प्रभु हमारी वाणी निरंतर आपके गुणों का वर्णन करती रहे , कानों में हम सदा आपकी ही कथा का श्रवण करते रहे, हाथ आपकी सेवा में निरंतर लगे रहें, मन आपके चरण कमलों का स्मरण करता रहे , सिर आपके सामने झुका रहे, आंखों से हम संतों का दर्शन करें |

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वनं वृन्दावनं नाम पशव्यं नवकाननम् । 
गोपगोपीगवां सेव्यं पुण्याद्रितृण वीरूधम् ।। १०/११/२८
एक वृंदावन नाम का बड़ा ही पवित्र वन है , जो गोप गोपी और गायों के लिए सेवनीय है | वहां पवित्र यमुना नदी है और अनेकों उपवन है | 



भ्रातस्तिष्ठ तले तले विटपि नाम ग्रामेषु भिक्षामट्, स्वछन्दं पिब  यामुनां जल मलं चिराणि कन्थां कुरू। सम्मानं कलयाति घोर  गरलं नीचापमानं सुधा, श्री राधा मुरली धरौ भज सखे वृन्दावनं  मात्यजं
भैया किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाना, गांव से भिक्षा मांग कर पेट भर लेना, पवित्र यमुना नदी के जल का पान कर लेना, जो कुछ भी  फटे पुराने वस्त्र मिल जाए उसे पहन  लेना, सम्मान को घोर विष के समान समझना और नीचे के द्वारा किए गए अपमान को अमृत समझते हुए निरंतर श्री राधा कृष्ण का भजन करना | परंतु वृंदावन का  त्याग कभी मत करना | 



बिभ्रद्  वेणुं जठरपटयो: श्रृंगवेत्रे च  कक्षे
वामे पाणौ  मसृणकवलं  तत्फलान्यड़्गुलीषु। 
तिष्ठन्  मध्ये स्वपरिसुहृदो  हासयन् नर्मभि:स्वै:
स्वर्ग लोके  मिषति  बुभुजे यज्ञभुग् बालकेलि: ।। 
१०/ १३/११
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी मुरली को कमर के सेट मे खोस रखे हैं, कांख में श्रृग्ड़ी दबा रखी है बाएं हाथ में दधि मिश्रित भात का कौर था और दाहिने हाथ की अंगुलियों में अदरक नींबू और आंवला मिर्च आदि के अचार को दबा रखा है|ग्वाल वालों के साथ हंसी मजाक करते हुए भोजन करने लगे, सभी ग्वाल वाल अपने घर से लाया हुआ भोजन कन्हैया को खिलाने लगे|

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यावद् वत्सपवत्सकाल्पकवपुर्यावत् कराड़्घ्र्यादिकं
यावद् यष्टिविषाणवेणुदलशिग् यावद्विभूषाम्बरम् |
यावच्छीगुणाभिधाकृतिवयो यावद्विहारादिकं
सर्वं विष्णुमयमगिरोङ्गवदजः सर्वस्वरूपो बभौ |

जितने भी ग्वाल बाल थे, उनकी जैसी आयु थी , छोटा बड़ा जैसा उनका शरीर था, उनके हाथ में जैसे छड़िया श्रृग्ड़ी थी, उन्होंने जैसे-जैसे वस्त्र पहने थे और आभूषण पहने तो भगवान श्रीकृष्ण ने सभी का रूप धारण कर लिया और सायं काल व्रज में प्रवेश किया |



नैते सुरेशा ऋषयो न चैते 
त्वमेव भासीश भिदाश्रयेपि |
सर्वं पृथक्त्वं निगमात् कथं वदे
त्युक्तेन वृत्तं प्रभुणा बलोवैत् |
कन्हैया यह ग्वाल बाल और बछड़े ना तो देवता हैं, और ना ही ऋषि हैं, सभी के रूप में आप दिखाई देते हो इसका क्या कारण है | भगवान श्री कृष्ण ने कहा दाऊ दादा ब्रह्मा जी ने मेरी परीक्षा लेने के लिए ग्वाल बाल और बछड़ों को अपनी माया से छिपा दिया है , इसलिए सभी के रूपों में मैं दिखाई दे रहा हूं |


नौमीड्य तेभ्रवपुषे तडिदम्बराय
गुञ्जावतंसपरिपिच्छलसन्मुखाय |
वनियस्रजे कवलवेत्रविषाण वेणु
लक्ष्मश्रिये मृदुपदे पशुपाङ्गजाय |

हे स्तुत्वपुरुष आपको मेरा नमस्कार है , प्रभो आपने मेंघ के समान श्यामल वर्ण में ( श्यामल शरीर में ) पीतांबर धारण कर रखा है, गले में गुंजा की माला , मस्तक में मयूर प्रच्छ, कंठ में वनमाला धारण कर रखी है, आपके बाएं हाथ में दही भात का कौर है, बगल में वेंट और श्रृग्ड़ी को आपने दबा रखा है, सेंट में बांसुरी को खोस के रखा है  आपके चरण अत्यंत सुकोमल हैं | प्रभु आपका जो यह गोपाल का वेश है यह आपने मुझ पर कृपा करने के लिए धारण किया है |

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तत्तेनुकम्पां सुसमीक्षमाणो भुञ्जान एवात्मकृतं विपाकम् |
हद्वाग्वपुर्भिर्विदधन्नमस्ते जीवेत यो मुक्तिपदे स दायभाक् |
प्रभो जो आपकी कृपा का अनुभव करता है प्रारब्ध से जो कुछ भी प्राप्त होता है उसमें ही संतुष्ट रहता है और ह्रदय वाणी से अपने आपको आपके चरणों में समर्पित कर देता है, वह जैसे पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है वैसे ही वह मुक्ति का अधिकारी हो जाता है |


अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम् |
यन्मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रम्हसनातनम् |
अहा नंद आदि सभी व्रजवासी परम सौभाग्यशाली हैं, जिनका मित्र परब्रह्म परमात्मा है ,,,,


गोपालाजिर कर्दमे बिहरसे विप्राद्ध्वरे लज्जसे
ब्रूसे गोधन हुंकृते स्तुति सतै र्मौनंविधत्सेसतां |
दास्यं गोकुल पुंश्चलीसुपुरुषेस्वाम्यं नदान्तात्मसु
ज्ञातं क्रष्णतवार्घिं पकंज युगं प्रेमैकलभ्यं परमं |
प्रभु आप गोकुल के कीचड़ में लोटपोट करते हो, उसमें विहार करते हो परंतु ब्राह्मणों की पवित्र यज्ञशाला में आने से आपको लज्जा आती है ,गायों की हुंकार करने पर आप उनके आगे पीछे डोलते हो उनसे बातें करते हैं और विद्वानों के द्वारा अनेकों प्रकार से की हुई स्तुति के द्वारा आप मौन धारण कर लेते हो, गोपियों की दासता स्वीकार करते हो और जितेंद्रिय के  स्वामी बनने में संकोच करते हो ,प्रभु मैं समझ गया प्रेम ही आपकी प्राप्ति का एकमात्र साधन है |

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न्याय्यो हि दण्डः कृतकिल्बिषेस्मिं स्तवावतारः खलनिग्रहाय |
रिपोः सुतानामपि तुल्यदृष्टे र्धत्से दमं फलमेवानुशंसन् |
प्रभु आपका अवतार दुष्टों को दंड देने के लिए हुआ है, आपने जो इस अपराधी को दंड दिया है वह सर्वथा उचित है आपकी दृष्टि में शत्रु और मित्र दोनों बराबर हैं |


वयं खलाः सहोत्पत्या तामसा दीर्घमन्यवाः |
स्वभावो दुस्त्यजो नाथ लोकानां यदसद्गृहः |

प्रभु हम जन्म से ही दुष्ट और तमोगुण स्वभाव के हैं , प्राणियों को अपने स्वभाव का त्याग करना अत्यंत कठिन है | प्रभु इस जगत की सृष्टि आपने की है. इस जगत में नागों की उत्पत्ति आपने की और आपने ही क्रोधी स्वभाव का बनाया है इसमें मेरी क्या गलती है |


इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकर सुगन्धिना |
न्यविशद वायुना वातं सगोगोपालकोच्युतः |

जब शरद ऋतु प्रारंभ हुई जब जल निर्मल हो गया कमल की सुगंध से सनकर वायु चारों ओर सुगंधी बिखेरने लगी| उस समय भगवान श्री कृष्ण ने गाय और ग्वाल बालों के साथ वन में प्रवेश किया और अपनी बांसुरी में मधुर तान छेड़ी | 

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बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकारं
विभ्रद वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् |
रन्ध्रान वेणोरधर सुधया पूरयन् गोपवृन्दै
र्वन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद गीतकीर्तिः
भगवान श्रीकृष्ण ग्वाल वालों के साथ  वृंदारण्य में प्रवेश कर रहे हैं, उनके सिर में मयूर का प्रच्छ है, एक बार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी के मयूर के मध्य नृत्य प्रतिस्पर्धा हुई श्री कृष्ण ऐसे नाचे की राधा रानी का मोर  प्रसन्न हो गया उसने अपना एक पंख गिरा दिया |

श्रीकृष्ण ने उसे वत्सार समझ अपने मस्तक में धारण कर लिया और तभी से श्रीकृष्ण मयूर पिक्ष धारण करने लगे | उनके कानों में पीला पुष्प शोभायमान हो रहा है |

यहां श्लोक मे ( कर्णयोः ) शब्द द्विवचन का प्रयोग किया गया है तात्पर्य है, कान तो दो हैं परंतु पुष्प एक है | यह पुष्प संकेत पुष्प है प्रातः काल जब श्रीकृष्ण गोचारण के लिए जाते हैं उस समय गोपियों के मन में जिज्ञासा होती है, आज श्री कृष्ण किस दिशा की ओर जाएंगे |

नंद आदि कुलवयो वृद्धों के सामने भी श्रीकृष्ण से पूछ नहीं सकती इसलिए श्री कृष्ण कनेर के पुष्प से संकेत करके बताते हैं, आज इस दिशा की ओर गोचरण करने जाएंगे | शरीर पर सुनहरा पीतांबर धारण किए हुए हैं, यह पितांबर राधारानी का वर्ण है |
चम्पा वर्णौ राधिका भ्रमर श्याम को दास |
मातृ भाव हिम जानिके भ्रमर न आवे पास |

इसलिए श्रीकृष्ण पीतांबर धारण करते हैं, गले में वनमाला धारण कर रखी है |

वनमाला किसे कहते हैं ?

तुलसी कुन्द मन्दार पारिजात सरोरुहैः |
पञ्चभिः ग्रथिता मालावनमालाप्रकीर्तितः |
तुलसी, कुंद, मंदार, परिजात और कमल इन पांच पुष्पों से वरमाला बनती है | श्रेष्ठ नर के समान भगवान श्री कृष्ण का सुंदर वेष है अथवा नट और वर के समान श्री कृष्ण का स्वरूप है नट वियोग श्रृंगार का प्रतीक है और वर संयोग का प्रतीक है दोनों विरुद्ध धर्मी हैं एक स्थान पर नहीं रह सकते परंतु ईश्वर का लक्षण ही है--

विरुद्ध धर्मास्ययत्वं ईश्वरत्वं |
जहां दो विरोधी धर्म एक ही स्थान पर हों उसे ईश्वर कहते हैं | श्री कृष्ण बांसुरी के छिद्रों को अपने अधरा मृत से पूर्ण कर रहे हैं | और विषयानंद जिनके सामने फीके पड़ जाए उसे वेणू कहते हैं , ग्वाल बाल पीछे-पीछे कृष्ण की कीर्ति का गान कर रहे हैं , आज यह वृंदावन धाम श्री कृष्ण के चरण चिन्हों के कारण बैकुंठ से भी श्रेष्ठ बन गया है |

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अक्षण्वतां फलमिदं न परं विदामः
सख्यः पशूननु विवेशयतोर्वषस्यैः
वक्त्रं वृजेश सुतयोरनुवेणु जुष्टं
यैर्वा निपीमनुरक्तकटाक्ष मोक्षम् |
एक गोपी कहती है अरी सखी आंख वालों की आंख का यही फल है कि जब श्री कृष्ण और बलराम गोचरण के लिए वन में जा रहे हो अथवा वन से लौटकर आ रहे हो उनके अधरों में मुरली और वे तिरछी चितवन से हमारी ओर निहार रहे हों |



हेमन्ते प्रथमे मासि नन्दव्रजकुमारिकाः |
चेरुर्हविष्यं भुञ्जानाः कात्यायन्यर्चनव्रतम् |
आप्लुत्याम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोगितेरुणे |
कृत्वा प्रतिकृतिं देवीमानुर्चुर्नृप सैकतीम् |
परीक्षित- हेमंत ऋतु का प्रथम मास मार्गशीर्ष में ब्रज की गोपियां कुमारिया ब्रह्म मुहूर्त में जाग जाती ,यमुना मैं स्नान करतीं, बालुका की प्रतिमा बनाती. षोडशोपचार से उनका पूजन करती और प्रार्थना करती |



कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरी |
नन्दगोप सुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः |
हे कात्यायनी ,हे महायोगिनी ,हे मात्र सब की एक अधिष्ठात्री स्वामिनी | आप नंद नंदन श्री कृष्ण को हमारा पति बना दीजिए | ब्रज कुमारीओं ने एक माह का व्रत रखा |

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श्याम सुन्दर ते दास्यः करवाम तवोदितम् |
देहि वासांसि धर्मज्ञ नो चेद राज्ञे ब्रुवामहे |
चतुर्थ वर्ण की गोपियां कहती हैं- हे श्यामसुंदर हम आपकी दासी हैं ,आप हमें हमारे वस्त्र दे दीजिए | वैश्य वर्ण की गोपियां कहती हैं- हे श्री कृष्ण आप जो कहोगे हम सब करेंगे पर आप हमारे वस्त्र दे दीजिए | ब्राह्मण वर्ण की गोपियां धर्म की दुहाई दे कहती है- प्यारे श्याम सुंदर आप धर्म के जानकार हो धर्मज्ञ हो इसलिए आप हमारे वस्त्र दे दीजिए | क्षत्रिय वर्ण की गोपियां कहती हैं- कृष्ण को डराते हुए श्री कृष्ण यदि तुम हमारे वस्त्र नहीं दोगे तो हम राजा से शिकायत कर देंगी |



स्नानं दानं तथा होमं शयनं गमनं भुजं |
विना वस्त्रं न कुर्वीत कुर्वन्तत्दोषकृद्भवेत |
स्नान , दान, हवन, शयन ,यात्रा और भोजन बिना वस्त्र के नहीं करना चाहिए |



संकल्पो विदितः साध्व्यो भवतीनां मदर्चनम् |
मयानुमोदितः योसौ सत्यो भवितुमर्हति |
कुमारीयों मैं तुम्हारे संकल्प को जानता हूं , तुम सभी मेरा पूजन करना चाहती हो | तुम्हारी यह अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी, आने वाली शरद पूर्णिमा की रात्रि में तुम मेरे साथ विहार करोगी |


न मय्या वेशितधियां कामः कामाय कल्पते |
भर्जिता क्वथिना धाना प्रायो बीजाय नेष्यते |
जैसे भुना हुआ अथवा उबले हुए बीज में पुनः अंकुर उत्पन्न नहीं होता, इसी प्रकार जिसका मन मुझ में लग जाता है, उसकी कामनाएं सांसारिक भोगों की ओर ले जाने में समर्थ नहीं होती |

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मैवं विभोर्हति भवान् गदितुं नृशंसं
सत्यं कुरुष्व निगमं तव पादमूलम् |
प्राप्ता वयं तुलसिदाम पदावसृष्टं
केशैर्निवोढुमतिलङ्घ्य समस्तबन्धून |
प्रभु ऐसे निष्ठुरता से भरे वचन मत कहिए, वेद कहते हैं , एक बार जो आपको प्राप्त कर लेता है फिर उसे लौटना नहीं पड़ता | हम अपने पति, पुत्र ,माता पिता की आज्ञा का उल्लंघन करके आपके पास आई हैं यदि हम लौटना भी चाहें तो वो  हमें स्वीकार नहीं करेंगे |



धिग् जन्मनस्त्रिवृद्विद्यां धिग्व्रतंधिगबहुयज्ञताम |
धिक्कुलं क्रियादाक्ष्यं विमुखा ये त्वधोक्षजे |
हमारा जन्म, विद्याअध्ययन ,वृत और यज्ञ आदि करना सब व्यर्थ हो गया ? क्योंकि आज हम श्रीकृष्ण के दर्शन से रहित हो गए |



पर्जन्यो भगवानिन्द्रो मेघास्तस्यात्ममूर्तयः |
तेभिवर्षन्ति भूतानां प्रीणनं जीवनं पयः ||
10,24,8

बेटा मेघों के स्वामी इंद्र हैं, इन्ही की कृपा से हमें जल की प्राप्ति होती है और जल से जीवो को जीवन मिलता है | हम इन्ही इंद्र की पूजन की तैयारी कर रहे हैं |




कर्मणा जीयते जन्तुः कर्मणैव विलीयते |
सुखं दःखं भयं क्षेमं कर्मणैवाभिपद्यते ||
10,24,23

पिता जी कर्म के अनुसार जीव उत्पन्न होता है , कर्म से वह मृत्यु को प्राप्त करता है | और कर्मों के द्वारा ही सुख-दुख भय और कल्याण की प्राप्ति होती है | 

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गिरित्वयाति धृष्टेन नाकृतो मे मनोरथः |
तस्मात त्वं तिल मात्रं हि नित्यं छयतां व्रजौ |

तुमनें मेरा मनोरथ पूर्ण नहीं किया इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं प्रतिदिन तुम तिल तिल घटते जाओगे |



क्व सप्तहायनो बालः क्व महाद्रिविधारणम् |
ततो नो जायते शक्ङा व्रजनाथ तवात्मजे |

भैया नन्द कहां तो यह सात वर्ष का बालक है और कहां इतने बड़े गिरिराज को उठाना भैया नंद सही सही बताओ यह कौन है ? 



अद्य मे निभृतो देहोद्यैवार्थोधिगतः प्रभो |
त्वत्पाद भाजो भगवन्नवापुः पारमध्वनः
प्रभो आज मेरा शरीर धारण करना सफल हो गया क्योंकि आज मुझे आपके चरणों की सेवा प्राप्त हुई | प्रभु आज्ञा करें आपका यहां आगमन किस कारण से हुआ है ? 



पिता न पुत्र परपाल ये दशौ
     माता यशोदा न सुतं प्रयाति |
गावश्च नैवाग्रत एव यान्ति
     कथं वसामोत्र विकुण्ठलोके |
जहां नंदबाबा अपने पुत्र कन्हैया का लालन नहीं करते , मैया यशोदा जहां कन्हैया को लोरी सुना कर नहीं सुलाती ,जहां कन्हैया गौवे नहीं चलते ,वहा हमें नहीं रहना या उस वैकुण्ठ लोक मे हमे नहीं रहना | 



ब्रम्हादि जय सरूढ दर्प कन्दर्प दर्पहा |
जयति श्रीपति र्गोपी रास मण्डल मण्डनः
कामदेव ने ब्रह्मादि देवताओं पर विजय प्राप्त कर ली , तो उसका अभिमान बढ़ गया उसी के मान मर्दन के लिए भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला का संकल्प किया |


भगवानपिता रात्रिः शरदोत्फुल्लमल्लिकाः |
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः |
शरद पूर्णिमा की रात्रि में जब पूर्व दिशा से पूर्ण चंद्र का उदय हुआ | चमेली तथा वेला आदि पुष्पों की सुगंध से वन सुभाषित हो रहा था | उस समय योगमाया का आश्रय ले भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला का मन बनाया | 



स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः |
व्रजस्यानामयं कच्चिद् ब्रूतागमनकारणम् |
गोपियों को कहा आपका स्वागत है बताइए आपकी प्रसन्नता के लिए मैं क्या करूं ? क्या कर सकता हूं ? व्रज मे सब ठीक-ठाक तो है तुम्हारे यहां आने का क्या कारण है ?

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