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Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok pdf

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Shrimad Bhagwat Mahapuran Shlok pdf

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कथितो वंशविस्तारो भवता सोमसूर्ययो: । 
राज्ञां चोभयवंश्यानां चरितं परमाद् भुतम्।। १०/१/१

गुरुदेव आपने चंद्रमा और सूर्य वंश में उत्पन्न होने वाले राजाओं के वंश का विस्तारपूर्वक वर्णन किया और जब मेरे आराध्य श्री कृष्ण चंद्र भगवान के चरित्र का वर्णन आया तो उसे अपने अपन संक्षेप में वर्णन किया इसलिए आप मुझे यदुवंश में उत्पन्न होने वाले भगवान श्री कृष्ण का विस्तारपूर्वक वर्णन सुनाइए |



नैषातिदु: सहा क्षुन्मां त्यक्तोदमपि बाधते। 
पिबन्तं त्वन्मुखाम्भोजच्युतं  हरिकथामृतम्।। १०/१/१३

गुरुदेव आप मुझे जो कथामृत का पान करा रहे हैं इससे मुझे भूख-प्यास बिल्कुल नहीं लग रही और गुरुदेव प्यास के कारण मुझसे एक ऋषि का अपराध हुआ था इसलिए मुझे भूख प्यास बिल्कुल नहीं सता रही | 


वासुदेव कथा प्रश्न: पुरूषांस्त्रीन् पुनाति हि। 
वक्तारं पृच्छकं श्रोतृंस्तत्पाद सलिलं यथा।। १०/१/१६
परीक्षित भगवान श्री कृष्ण के विषय में किया गया प्रश्न वक्ता, पूछने वाला और श्रोता तीनों को पवित्र कर देता है |



मृत्युर्जन्मवतां वीर देहेन सह जायते। 
अद्य वाब्दशतान्ते वा मृत्युर्वै प्राणिनां ध्रुव:।। १०/१/३८
और कंस प्राणी के उत्पन्न होते ही उसके साथ हि उसकी मृत्यु भी उत्पन्न हो जाती है, वह आज हो अथवा सौ वर्ष बाद हो , मरना सबको है |

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गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोप गोभिरलड़्कृतम्। 
रोहिणी वसुदेवस्य भार्याऽऽस्ते नन्दगोकुले।। १०/२/७
हे देवी तुम गाय और गोपों से अलंकृत नंद बाबा की गोकुल में जाओ वहां वसुदेव की पत्नी रोहिणी निवास करती है, तुम देवकी के गर्भ को ले जाकर रोहणी के गर्भ मे स्थापित कर दो | 


सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनिं निहितं च सत्ये । 
सत्यस्य सत्यमृत सत्य नेत्रं सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नार्तिहरे:।। १०/२/२६
देवता कहते हैं- प्रभु आपका संकल्प सत्य है ,देवता बड़े स्वार्थी हैं वह भगवान को याद दिला रहे हैं, प्रभु आपने प्रतिज्ञा की थी जन्म लेकर मैं कंस को मारूंगा इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञा को भूलना मत |सत्यपरं- सत्य ही आपकी प्राप्ति का श्रेष्ठ साधन है |

त्रिसत्यं- जगत की उत्पत्ति के पूर्व, प्रलय के पश्चात और जगत की स्थिति इन तीनों कालों में आप ही सत्य रूप हैं | पृथ्वी,जल,तेज,वायु और आकाश में दिखाई देने वाले सत्य रूप जो पंचमहाभूत हैं,उनके कारण भी आप ही हैं |आप उनमें अंतर्यामी रूप से विराजमान हैं | आप सत्य के भी सत्य हैं | सत्य स्वरूप परमात्मा की हम शरण ग्रहण करते हैं |


दिष्टयाम्ब ते कुक्षिगत: पर: पुमा- नंशेन साक्षाद्  भगवान्  भवाय न:। 
मा भूद् भयं भोजपतेर्मुमूषर्षो- र्गोप्ता यूदूनां सविता  तवात्मज:।। १०/२/ ४१
हे माता जी आपके घर में साक्षात भगवान श्री हरि पधारे हैं इसलिए आप कंस से बिल्कुल भी मत डरिएगा, क्योंकि यह कंस तो थोड़े ही दिनों का मेहमान है | आपका पुत्र सदा यदुवंशियों की रक्षा करेगा | 

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अथ सर्व गुणोपेतः कालः परमशोभनः |
यरर्ह्येवाजनजन्मर्क्षम शान्तर्क्षग्रहतारकम् ||
जब परम शोभायमान-सुहावना समय आया ग्रह नक्षत्र तारे शांत हो गए, पवित्र भाद्रपद का महीना आया , भगवान का सानिध्य प्रदान करने वाला परम शोभायमान समय आया रोहिणी नक्षत्र था | 


तमद्भुतमं बालकमम्बुजेक्षणं चतुर्भुजं शंखगदार्युदायुधम् |
श्रीवत्सलक्ष्मं गलशोभि कौस्तुभं पीताम्बरं सान्द्रपयोद सौभगम् |

वसुदेव जी ने अपने सामने एक अद्भुत बालक को देखा-

बालेसु-बालेसु कानि ब्रम्हाण्डानि यस्य एव भूतं- उस बालक के रोम रोम में अनेकों ब्रह्मांड समाए हुए हैं इसलिए यह अद्भुत बालक है| अथवा-

बालः कं ब्रम्हा यस्य- ब्रम्हा जी जिसके बालक हैं, इसलिए यह अद्भुत बालक है | यह बालक होने पर भी साक्षात ब्रह्म है इसलिए यह अद्भुत बालक है |

अम्बुजायाम् ईक्षणे यस्य- अम्बुजेक्षणम् - जन्म लेते ही अंबुजा लक्ष्मी को ढूंढ रहा है इसलिए यह अद्भुत बालक है | इसकी चार भुजाएं हैं जिसमें इन्होंने शंख,चक्र,गदा और पद्म धारण कर रखा है | ह्रदय में श्रीवत्स की सुनहरी रेखा विद्यमान है ,गले में कौस्तुभ मणि शोभायमान हो रही है और मेघ के सामान श्यामल शरीर में पितांबर फहरा रहा है , ऐसे अद्भुत बालक को वसुदेव जी ने देखा,,,,

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विदितोसि भवान् साक्षात् पुरुषः प्रकृतेः परः 
केवलानुभवानन्दस्वरूपः सर्वबुद्धिदृक |
प्रभु- मैं आपको जान गया आप प्रकति से परे परम पुरुष परमात्मा हैं, केवल अनुभव और आनंद स्वरूप है तथा समस्त सिद्धियों के एकमात्र साक्षी आप हि हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं |



नन्द गोपगृहे जाता यशोदा गर्भ सम्भवा । 
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचल निवासिनी ।।
ऐसा आदेश दे वह कन्या विंध्यांचल पर्वत में चली आई और विंध्यवासिनी देवी के रूप में विख्यात हुई |



नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाताह्लदो महामना:। 
आहूय विप्रान् वेदज्ञान् स्नात: शुचिरलड़्कृत:।। १०/५/१
नंद बाबा की जब चतुर्थ अवस्था आ गई और उनकी कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने ब्रजवासी ब्राह्मणों से अनुष्ठान कराया ब्रजवासी ब्राह्मण दिन में अनुष्ठान करते रात्रि में भांग खाकर रबड़ी छानते और भगवान से प्रार्थना करते प्रभु नंद बाबा को एक प्यारो सो लाला दे दो |

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कंसेन प्रहिता घोरा पूतना बालघातिनी। 
शिशूंश्चचार निघ्नन्ती पुरग्राम व्रजादिषु।। १०/६/२
यहां कंस की भेजी हुई पूतना नाम की राक्षसी जो छोटे छोटे बालकों को मारती हुई नगर, गांव मे घूम रही थी | आकाश मार्ग से गोकुल मे उसने उत्सव होते हुए देखा तो | माया से सुंदर स्त्री का रूप धारण कर वहां पहुंच गई | वह इतनी सुंदर थी कि ब्रज वासियों ने उसे देखा तो समझा साक्षात लक्ष्मी कन्हैया का दर्शन करने आई हैं |



सा मुञ्च मुञ्चालमिति प्रभाषिणी निष्पीडयमानाखिल जीवमर्मणि। 
विवृत्य नेत्रे चरणौ भुजौ मुहु: प्रस्विन्नगात्रा क्षिपती रूरोद ह|१०/६/११
बाल संहिता में ऐसा उपाख्यान आता है ,जब बालकों को पूतना नाम का ग्रह लग जाता है तो, बालकम् मुन्च मुन्च पूतने |
इस मंत्र से झाडा लगाया जाता है , परंतु आज पूतना को हि एक बालक लग गया इसलिए वह कहती है कि मुन्च-मुन्च, कन्हैया छोड़ दो - छोड़ दो |



इन्द्रियाणि हृषीकेश: प्राणान् नारायणोऽवतु । 
श्वेतद्वीप पतिश्चित्तं मनो योगेश्वरोऽवतु।। १०/६/२४
ऋषिकेश भगवान इंद्रियों की रक्षा करें ,नारायण प्राणों की ,श्वेत दीप के अधिपति वाराह भगवान चित्त की और योगेश्वर भगवान मन की रक्षा करें |


पूतना लोकबालघ्नी राक्षसी रुधिराशना।
जिघांस यापि हरये स्तनं दत्त्वाऽऽप सद्गतिम् ।। १०/६/३५
परीक्षित पूतना जाति से राक्षसी थी, छोटे छोटे बालकों को मार डालना उनका रक्त पी लेना काम था , श्रीकृष्ण को भी वह मारने की इच्छा से आई थी | परंतु उसे भी कन्हैया ने माता की गति प्रदान कर दी|

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अयं हि रोहिणीपुत्रो रमयन् सुहृदो गुणै:। 
आख्यास्यते राम इति बलाधिक्याद् बलं विदु:।
यह कोहणी का पुत्र है, बल के अधिकता के कारण लोग इसे बल कहेंगे | यह सबको आनंदित करेगा इसलिए इसका दूसरा नाम राम होगा | तब ये बलराम कहलायेगें |


कालेन व्रजताल्पेन गोकुले रामकेशवौ। 
जानुभ्यां सह पाणिभ्यां रिंगमाणौ विजह्रतु:।। १०/८/२१
जब भगवान श्री कृष्ण और बलराम कुछ बड़े हो गए तो घुटनों के बल घिसटते हुए चलने लगे एक दिन घिसटते घिसटते गोकुल के कीचड़ में पहुंच गए और कीचड़ में में स्नान करने लगे |



पंकाभिषिक्त सकलावयवं विलोक्यं दामोदरं वदति कोपवशात्य शोदा ।
त्वं सूकरोऽसि गतजन्मनि पूतनारे इत्यक्तिसंस्मित मुखोऽवतु नो मुरारे।। 

मैया यशोदा ने कन्हैया को इस हाल में देखा तो क्रोधित हो कहा क्यों रे पूतना के शत्रु क्यों रे पूतना को मारने वाला तू पूर्व जन्म में शूकर था क्या , कन्हैया ने सोचा मैया को कैसे मालूम कि मैं पूर्व जन्म में शूकर था, कन्हैया ने  सिर हिलाते हुए कहा हां मैया मैं शूकर था |

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श्रृणु सखि कौतुक मेकं नन्द निकेतांगणे मयादृष्टं। 
गोधूलि धूसरितांग: नृत्यति वेदान्त सिध्दान्त।। 
अरी सखियों आज मैंने नंद बाबा के आंगन में गोधूलि से धूसरित वेदांत के सिद्धांत रूप श्री कृष्ण को नृत्य करते हुए देखा | जब गोपियों ने श्रीकृष्ण की इस छवि का वर्णन सुना तो प्रार्थना करने लगी | हे प्रभु ,श्री कृष्ण हमारे घर कब आएंगे कब हम पर कृपा करेंगे |


सून्ये चोरयत: स्वयं निजगृहे हैयंगवीनं मणिस् तम्भे स्वप्रतिविम्ब मीक्षितवतस्तेनैव सार्ध्दं भिया।
भ्रातर्मा वद मातरं मम समो भागस्तवा पीहितो भुड्क्ष्वेत्यालपतो हरे: कलवचोमात्रा रह: श्रूयते
वहां जैसे ही मणिमय स्तंभ में अपनी परछाई को देखा डर गए, कहा  भैया मैया से मत कहियो जामे तेरो भी भाग है ,आ खाले | मैया ने जैसे ही कन्हैया की बात को सुना कहा कन्हैया क्या कर रहे हो |



मात: क एष नवनीत मिद त्वदीयं लोभेन चोरयितु मद्य गृहं प्रविष्ट:।
मद्वारणं न मनुते मयि रोषभाजि रोषं तनोति न हि मे नवनीत लोभ:।।
मैया देखो घर में चोर घुस आया है, जब मैं इसे मना करता हूं तो यह मानता नहीं और इस पर क्रोध है करता हूं तो यह भी बदले में मुझे क्रोध  दिखा रहा है|और मैया तू मोपै संदेह मत करियो, मोये माखन को लोभ नाय| 

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कृष्णक्वासि करोषि किं पितरिति श्रुत्वैव मातुर्वच: साशड्कं नवनीत चौर्यविरतो विश्रभ्य तामब्रवीत् ।
मात: कंकण पद्मराग  महसा पाणिर्ममातप्यते तेनायं नवनीत भाण्ड विवरे विन्यस्य निर्वापित:।।
अरे ओ कन्हैया, कहां हो| इतने पर भी जब कन्हैया ने प्रत्युत्तर नहीं दिया तो मैया ने कहा अरे ओ मेरे बाप कन्हैया क्या कर रहा है| कन्हैया ने जैसे ही मैया की आवाज सुनी दही माखन के मटके से हाथ बाहर निकाल लिया, कहा मैंया आपने जो मेरे हाथ में पद्मराग मणि के कंगन पहना रखा है उससे मेरे हाथ जल रहे थे, उन्हीं को ठंडा करने के लिए मैंने अपने हाथ को दधी के मटके में डाल दिए |



वत्सान् मुञ्चन् क्वचिदसमये क्रोशसंजात हास: स्तेयं स्वाद्वत्त्यथ दधि पय: कल्पितै: स्तेययोगै:।
मर्कान् भोक्ष्यन् विभजति स चेन्नात्ति भाण्डं भिनत्ति,द्रव्यालाभे स गृहकुपितो यात्युपक्रोश्य तोकान्।१०/८/२९
एक गोपी कहती है मैया तेरो लाल हमारे बछड़ा है छोड़ देह, मैया ने कहा गोपी यह तो अच्छी बात है मेरो लाला तुम्हारी सहायता करै, गोपी कहती है मैया जब गाय दूहने का समय नहीं होता तब यह बछड़ों को छोड़ देता है, जिससे बछड़ा गाय को सबरो दूध पी जाए |



नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभिशंसिन: । 
यदि  सत्यगिरस्तर्हि समक्षं पश्य मे मुखम् ।। १०/८/३५
मैया मैंने मिट्टी नहीं खाई यह सब झूठ बोल रहे हैं ,यदि तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं तो मेरा मुंह देख लो |

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