F मृगयुरिव कपीन्द्रं /mriga yuriv kapindram - bhagwat kathanak
मृगयुरिव कपीन्द्रं /mriga yuriv kapindram

bhagwat katha sikhe

मृगयुरिव कपीन्द्रं /mriga yuriv kapindram

मृगयुरिव कपीन्द्रं /mriga yuriv kapindram

 मृगयुरिव कपीन्द्रं /mriga yuriv kapindram


मृगयुरिव कपीन्द्रं विव्यधे लुब्धधर्मा
स्त्रियमकृत विरूपां स्त्रीजितः कामयानाम् |
बलिमपि बलिमत्त्वावेष्टयद् ध्वाङ्क्षवद्य
स्तदलमसितसख्यैर्दुस्त्यजस्तत्कथार्थः |

जब तेरे स्वामी राम वन गए थे जब उन्होंने निरपराध बाली को व्याघ्र के समान छिपकर बड़े निर्दयता से मारा था , बेचारी सुर्पणखा उनके पास काम बस आई थी परंतु उन्होंने उसके भी नाक कान काट कर उसे भी कुरुप बना दिया, राजा बलि उसने तो अपना सर्वस्व दान कर दिया भगवान को, परंतु उसे भी वरुण पास में बांध पाताल में डाल दिया |

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