F रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni - bhagwat kathanak
रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni

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रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni

रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni

 रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni


रत्नाकरस्तव गृहं  पत्नी  च  पद्मा
       देयं किमस्ति तुभ्यं  जगदीश्वराय  । 
आभीर   वाम  नयना  हृतमानसाय
      दत्तं  मनो  मे  यदुपते  कृष्णा  गृहाण।। 
अगर मैं रत्न प्रदान करुं तो रत्नाकर समुद्र इनका निवास स्थान है ,यदि मैं इन्हें धन समर्पित करुं तो धन की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी इनकी पत्नी हैं |इसलिए इन्हें क्या दूं हां इनके पास मन नहीं है क्योंकि मन तो ब्रज गोकुल की गोप कुमारियों ने चुरा लिया है |

इसने गजेंद्र ने अपना मन रूपी पुष्प, मन रूपी सुमन ,भगवान श्री हरि के चरणों में समर्पित किया और कहा-- हे अखिल जगत के गुरु भगवान नारायण मैं आपको बारंबार नमस्कार करता हूं | 

 रत्नाकरस्तव गृहं पत्नी /ratna karastava grham patni


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