स वै मन: कृष्णपदार /sa vai manah krshnapadaar
स वै मन: कृष्णपदार विन्दोयो-
र्वचांसि वैकुण्ठ गुणानुवर्णने ।
करौ हरेर्मन्दिर मार्जनादिषु
श्रुतिं चकाराच्युत सत्कथोदये ।। ९/४/१८
उनका मन सदा भगवान श्री कृष्ण के चरण कमलों के ध्यान में लगा रहता था,वाणी से वे भगवान के नाम गुणों का कीर्तन करते ,हाथों से मंदिर की सफाई करते ,कानों से भगवान श्री हरि की मधुर कथा का पान करते----
सब कुछ भगवान को समर्पित करके ही उनका प्रसाद ग्रहण करते उनके इस भक्ति को देख भगवान श्री हरि ने अपना सुदर्शन चक्र उनकी रक्षा में नियुक्त कर दिया |
स वै मन: कृष्णपदार /sa vai manah krshnapadaar
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