साधवो हृदयं मह्यं /Sādhavō hr̥dayaṁ mahyaṁ
साधवो हृदयं मह्यं साधूनां हृदयं त्वहम् ।
मदन्यत् ते न जानन्ति नाहं तेभ्यो मनागपि।। ९/४/६८
भक्त मेरा हृदय है और मैं भक्तों का हृदय हूं वह मेरे अलावा किसी और को नहीं जानता इसीलिए तुमने जिसका अपराध किया है उसी की शरण में जाओ |
साधवो हृदयं मह्यं /Sādhavō hr̥dayaṁ mahyaṁ
- आप के लिए यह विभिन्न सामग्री उपलब्ध है-
भागवत कथा , राम कथा , गीता , पूजन संग्रह , कहानी संग्रह , दृष्टान्त संग्रह , स्तोत्र संग्रह , भजन संग्रह , धार्मिक प्रवचन , चालीसा संग्रह , kathahindi.com
आप हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें- click here
हमारे YouTube चैनल को सब्स्क्राइब करने के लिए क्लिक करें- click hear