सम: प्रिय: सुहृद ब्रह्मन् /samah priyah suhrd brahman
सम: प्रिय: सुहृद ब्रह्मन् भूतानां भगवान् स्वयम् ।
इन्द्रस्यार्थे कथं दैत्यानवधी द्विषमो यथा ।।
( 7 , 1, 1 )
परीक्षित सुकदेव जी से प्रश्न करते हैं- कि हे भगवन भगवान तो समदर्शी है फिर वे देवताओं का पक्ष लेकर असुरों का वध बार-बार क्यों करते हैं ,श्री सुकदेव जी कहते हैं परीक्षित तुम्हारा कथन सत्य है भगवान स्वभावत: गुण से रहित हैं परंतु जब भगवान को सत्व गुण की वृद्धि करनी होती है ,तब वे देवताओं का पक्ष लेते हैं |सम: प्रिय: सुहृद ब्रह्मन् /samah priyah suhrd brahman
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