श्रेयस्त्वं कतमद्राजन /shreyastvam katmadrajan
श्रेयस्त्वं कतमद्राजन कर्मणात्मन् ईहषे |
दुःखहानिः सुखावाप्तिः श्रेयस्तन्नेह चेष्यते ||
राजन इस प्रकार पशु हिंसात्मक यज्ञों से तुम अपना किस प्रकार का कल्याण करना चाहते हो क्योंकि दुख की अत्यान्तिक निवृत्ति और परमानंद की प्राप्ति का नाम ही कल्याण है |
श्रेयस्त्वं कतमद्राजन /shreyastvam katmadrajan
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