श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर /Śrutvā guṇān bhuvana sundar
श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर श्रृण्वतां ते निर्विश्य कर्णविवरैर्हरतोङ्गतापम् |रूपं दृशां दृशिमतामखिलार्थलाभं त्वय्यच्युताविशति चित्तमपत्रपं मे
हे त्रिभुवन सुंदर प्रभु जब से मैंने आपके गुणों का वर्णन सुना है ,मेरा मन लज्जा शर्म सब कुछ छोड़कर आप में ही प्रविष्ट हो गया है | इस संसार में ऐसी कौन सी कुलीन स्त्री है जो आपको पति के रूप में प्राप्त ना करना चाहेगी |श्रुत्वा गुणान् भुवनसुन्दर /Śrutvā guṇān bhuvana sundar
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