वत्सान् मुञ्चन् क्वचिदसमये /Vatsān muñchan kvacida samyē
वत्सान् मुञ्चन् क्वचिदसमये क्रोशसंजात हास: स्तेयं स्वाद्वत्त्यथ दधि पय: कल्पितै: स्तेययोगै:।
मर्कान् भोक्ष्यन् विभजति स चेन्नात्ति भाण्डं भिनत्ति,द्रव्यालाभे स गृहकुपितो यात्युपक्रोश्य तोकान्।१०/८/२९
एक गोपी कहती है मैया तेरो लाल हमारे बछड़ा है छोड़ देह, मैया ने कहा गोपी यह तो अच्छी बात है मेरो लाला तुम्हारी सहायता करै, गोपी कहती है मैया जब गाय दूहने का समय नहीं होता तब यह बछड़ों को छोड़ देता है, जिससे बछड़ा गाय को सबरो दूध पी जाए |वत्सान् मुञ्चन् क्वचिदसमये /Vatsān muñchan kvacida samyē
- आप के लिए यह विभिन्न सामग्री उपलब्ध है-
भागवत कथा , राम कथा , गीता , पूजन संग्रह , कहानी संग्रह , दृष्टान्त संग्रह , स्तोत्र संग्रह , भजन संग्रह , धार्मिक प्रवचन , चालीसा संग्रह , kathahindi.com
आप हमारे whatsapp ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें- click here
हमारे YouTube चैनल को सब्स्क्राइब करने के लिए क्लिक करें- click hear