F कृष्णक्वासि करोषि किं /krashna kvasi karoshi kim - bhagwat kathanak
कृष्णक्वासि करोषि किं /krashna kvasi karoshi kim

bhagwat katha sikhe

कृष्णक्वासि करोषि किं /krashna kvasi karoshi kim

कृष्णक्वासि करोषि किं /krashna kvasi karoshi kim

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कृष्णक्वासि करोषि किं पितरिति श्रुत्वैव मातुर्वच: साशड्कं नवनीत चौर्यविरतो विश्रभ्य तामब्रवीत् ।
मात: कंकण पद्मराग  महसा पाणिर्ममातप्यते तेनायं नवनीत भाण्ड विवरे विन्यस्य निर्वापित:।।

अरे ओ कन्हैया, कहां हो| इतने पर भी जब कन्हैया ने प्रत्युत्तर नहीं दिया तो मैया ने कहा अरे ओ मेरे बाप कन्हैया क्या कर रहा है| कन्हैया ने जैसे ही मैया की आवाज सुनी दही माखन के मटके से हाथ बाहर निकाल लिया, कहा मैंया आपने जो मेरे हाथ में पद्मराग मणि के कंगन पहना रखा है उससे मेरे हाथ जल रहे थे, उन्हीं को ठंडा करने के लिए मैंने अपने हाथ को दधी के मटके में डाल दिए |

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