यावद् म्रियेत जठरं /Yāvad mriyēta jaṭharaṁ
यावद् म्रियेत जठरं तावत् स्त्वं हि देहिनाम् |
अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति ||
जितने में पेट भर जाए जितने में परिवार का निर्वाह हो जाए उतने ही धन का संग्रह करना चाहिए इससे अधिक धन को जो अपना मानते हैं वह चोर है दंड के अधिकारी हैं |
यावद् म्रियेत जठरं /Yāvad mriyēta jaṭharaṁ
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