यन्नवे भाजने लग्नः / yannve bhajne lagnah shloka niti

 यन्नवे भाजने लग्नः / yannve bhajne lagnah shloka niti

यन्नवे भाजने लग्नः / yannve bhajne lagnah shloka niti

 यन्नवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत्।

कथाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते।।५।।


प्रसंग:- ग्रन्थस्य मुख्यं प्रयोजनं निर्दिशति-


अन्वयः- यत् नवे, भाजने लग्नः, संस्कारः, अन्यथा न भवेत् तत्, इह बालानां, कथाच्छलेन, नीतिः कथ्यते।।५।


व्याख्या- यत् = यस्माद्धेतोः, नवे = अपरिपक्वे, भाजने = पात्रेशिशौ च, लग्नः = प्रयुक्तः, संस्कारः = रेखादिरूपो गुणाधानादिरूपविद्यासंस्कारश्च अन्यथा न भवेत् = आमरणं विपरीतो न भवति, तत् = तस्माद्धेतोः, इह = अस्मिन् हितोपदेशे, बालानां, कथाच्छलेन काककूर्मादीनामुपाख्यानादिकथाव्याजेन, नीतिः =राजनीतिप्रभृतिनीतिशास्त्रं कथ्यते ।।५।


भाषा- जिस कारण मिट्टी के कच्चे पात्र में किया हुआ रेखा आदि कलात्मक संस्कार उसके पकाये जाने पर कभी मिट नहीं सकता इसी कारण कोमल बुद्धिवाले बालकों को अनेक कथाओं के बहाने से मैं इस हितोपदेश ग्रन्थ द्वारा नीतिशास्त्रका उपदेश करता हूँ।।५।

 नीति संग्रह- मित्रलाभ: के सभी श्लोकों की लिस्ट देखें नीचे दिये लिंक पर क्लिक  करके। -clickNiti Sangrah all Shloka List

 यन्नवे भाजने लग्नः / yannve bhajne lagnah shloka niti


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