F मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti - bhagwat kathanak
मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti

bhagwat katha sikhe

मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti

मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti

 मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti

मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti

मित्रलाभः सुहृद्भेदो विग्रहः सन्धिरेव च।

अश्लीलानुपयुक्तांशपरित्यागेन दर्शितः ।।६।।


प्रसंग:- ग्रन्थे वर्णितान् विषयान् प्रतिपादयति-


अन्वयः-मित्रलाभः, सुहृद्भेदः, विग्रहः, सन्धिः एव च अश्लीलानुप -युक्तांशपरित्यागेन दर्शितः ।।६।


व्याख्या मित्रलाभः, सुहृद्भेदः, विग्रहः सन्धिः च इति प्रकरणचतुष्टयम) 'अश्लीलश्च अनुपयुक्तशच अश्लीलानुपयुक्तौ तौ अंशी अश्लीलानपयक्तांशी तौर अश्लीलानुपयुक्तभागौ/तयोः परित्यागेन = परिहारेण (मया इह) दर्शितः । ।


भाषा- मैंने अश्लील और अनुपयुक्त अंशो को निकाल कर तथा कहीं-कहीं अन्य ग्रन्थों को लेकर मित्रलाभ, सुहृद्भेद, विग्रह और सन्धि इन चारों प्रकरणों को यहाँ दिखाया है।।६।

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 मित्रलाभः सुहृद्भेदो / mitralabhah suhrida bhedo shloka niti


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