F आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya - bhagwat kathanak
आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya

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आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya

आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya

 आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya

आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya


आधिव्याधिशतैर्जनस्य विविधैरारोग्यमुन्मूल्यते

लक्ष्मीर्यत्र पतन्ति तत्र विवृतद्वारा इव व्यापदः।

जातं जातमवश्यमाशु विवशं मृत्युः करोत्यात्मसा

तत्किनामनिरंकुशेन विधिनायनिर्मितं सुस्थिरम्॥९०॥

अनेक प्रकार की मानसिक चिन्तायें तथा शारीरिक व्याधियाँ पुरुष के स्वास्थ्य को नष्ट कर देती हैं, जहाँ लक्ष्मी का वास रहता है। वहाँ आपत्तियों की भी भरमार रहा करती हैं; जो उत्पन्न होता है मृत्यु उनको अवश्य ही अपने वश कर लेती है, इस परिस्थिति में कौनसी वस्तु है, जिसको विधाता ने स्थिर बनाया है।

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 आधिव्याधिशतै /aadhivyadhi satai shloka vairagya

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