आयुर्वर्षशतं नृणां /aayurvarsha satam shloka vairagya
आयुर्वर्षशतं नृणां परिमित्तं रात्रौ तदर्थ गतं
तस्यार्द्धस्य परस्य चार्द्धमपरं बालत्व वृद्धत्वयोः।
शेष व्याधिवियोगदुःखसहितं सेवादिभिर्नीयते जीवे
वारितरङ्गचञ्चलतरे सौख्यं कुतःप्राणिनाम्॥९१॥
मनुष्य की पूर्ण आयु एक सौ वर्ष की है, उसमें से आधी आयु ५० वर्ष रात्रि में सोकर बिता दी, बाकी बचे पचास में से २५ वर्ष लड़कपन और बुढ़ापे में बीत गये, इससे बचे २५ वर्ष रोग, पुत्रकलह आदि का वियोग आदि दुःख में तथा अपनी जीविका के लिए धनी लोगों की सेवा आदि में बीत जाता है, तो अब जलतरंग के समान चंचल इस जीवन में प्राणी को सुख कैसे मिल सकता है?