F आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya - bhagwat kathanak
आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya

आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya

 आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya

आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya


आक्रान्तं मरणेन जन्म जरसा विद्युच्चलं यौवनं

संतोषो धनलिप्सया शमसुखं प्रौढाङ्गनाविभ्रमैः॥

लोकैर्मत्सरिभिर्गुणा वनभुवो व्यालैर्नृपा दुर्जनै

रस्थैर्येण विभूतयोऽप्युपहता ग्रस्तं न किं केन वा॥८९॥

जन्म मृत्यु से, विद्युत के समान अस्थिर यौवन वार्धक्य से, संतोष धन की लिप्सा से, शान्ति-सुख तरुण युवतियों के विलासों से, गुण डाह करने वाले दुष्टजनों से, वन सर्पो से, राजा दुर्जनों से, ऐश्वर्य अस्थिरता से आक्रान्त है, किससे कौन आक्रान्त नहीं है, अर्थात् संसार उपादेय सभी पदार्थ किसी न किसी से आक्रान्त हैं इसलिए जो किसी से आक्रान्त नहीं है, उस ब्रह्म की आराधना करो।

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 आक्रान्तं मरणेन /akrantam marnen shloka vairagya

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