F आयुः कल्लोललोलं /aayuh kallol lolam shloka vairagya - bhagwat kathanak
आयुः कल्लोललोलं /aayuh kallol lolam shloka vairagya

bhagwat katha sikhe

आयुः कल्लोललोलं /aayuh kallol lolam shloka vairagya

आयुः कल्लोललोलं /aayuh kallol lolam shloka vairagya

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आयुः कल्लोललोलं /aayuh kallol lolam shloka vairagya


आयुः कल्लोललोलं कतिपयदिवसंस्थायिनी यौवन

श्रीराः संकल्पकल्पा घनसमयतडिद्विभ्रमा भोगपूगाः।

कण्ठाश्लेषोदगूढं तदपि च न चिरं यत्प्रियाभिः प्रणीतं

ब्रह्मण्यासक्तचित्ता भवतभवभयाम्भोधिपारं तरीतुम्॥६९॥

आयु जलतरंग के समान चंचल है जवानी कुछ ही दिनों के लिए रहा करती है, धन मानसिक कल्पना के समान अस्थिर है, वासना भी वर्षाकालीन विद्युद्विलास की तरह चंचल है, प्रियाओं से गले मिलकर दिया हुआ आलिङ्गनरूप सुख भी चिरस्थायी नहीं है, इसलिए भव-भयरूपी समुद्र से पार होने के लिए परमात्मा में मन लगाओ।

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