किं वेदैः स्मृतिभिः /kim vedai smritibhi shloka vairagya
किं वेदैः स्मृतिभिः पुराणपठनैः शास्त्रैर्महाविस्तारैः
स्वर्गग्रामकुटीनिवासफलदैः कर्मक्रियाविभ्रमैः।
मुक्त्वेकं भवबन्धदुःखरचनाविध्वंसकालानलं
स्वात्मानन्दपदप्रवेशकलनं शेषा वणिग्वृत्तयः॥६८॥
वेद, स्मृति, पुराण और बड़े-बड़े शास्त्रों के पढ़ने से तथा स्वर्गरूपी कुटी में निवासरूप फल को देने वाली क्रियाओं से क्या प्रयोजन है ? भवबन्धनरूप दुःख के विध्वंस के लिए उत्पन्न प्रलयाग्नि के समान ब्रह्मानन्दरूप पद प्रवेश को छोड़कर शेष सभी वृत्तियाँ व्यापारमात्र हैं अर्थात् ब्रह्मज्ञान की वृत्ति को छोड़कर अन्य वृत्तियाँ फल की आकांक्षा से हुआ करती हैं।