ब्रह्माण्डमण्डी/bramhand mandi shloka vairagya
ब्रह्माण्डमण्डीमात्रं न लोभाय मनस्विनः
शफरीस्फुरितेनाब्धेः क्षुब्धता न तु जायते॥७० ॥
यह ब्रह्माण्ड एक बिम्ब फल की तरह है, कभी भी योगियों के मन को लुभा नहीं सकता, समुद्र शफरी (मत्स्य विशेष) के छटपटाने से क्षुब्ध नहीं होता।